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Up Kiran, Digital Desk: अवैध घुसपैठ का सवाल अक्सर सुरक्षा और संसाधनों की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन इसके पीछे छिपे मानवीय पहलुओं पर कम ही चर्चा होती है। हाल ही में सामने आया एक मामला इस बहस को और गहरा करता है। भारत से बांग्लादेश भेजी गई सुनाली खातून नाम की महिला को अब बांग्लादेश ने भी अपनाने से इंकार कर दिया है। नतीजा यह हुआ कि आठ महीने की गर्भवती सुनाली फिलहाल जेल की चारदीवारी में कैद हैं और यह सवाल उनसे कहीं ज्यादा हमारे पूरे सिस्टम के सामने खड़ा है—उनका होने वाला बच्चा किस देश का नागरिक माना जाएगा?

अवैध ठहराए जाने के बाद डिपोर्ट

असम पुलिस ने सुनाली खातून को अवैध घुसपैठिया मानते हुए हाल ही में बांग्लादेश भेजा। भारत का मानना था कि वह बांग्लादेश की नागरिक हैं, लेकिन पड़ोसी देश की चपाई नवाबगंज पुलिस ने भी उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया। यहां तक कि उनके पास मौजूद आधार कार्ड और वोटर आईडी को आधार बनाकर ही उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

गर्भवती महिला जेल में, सुनवाई लंबित

सबसे गंभीर चिंता यह है कि सुनाली किसी भी क्षण मातृत्व की अवस्था में प्रवेश कर सकती हैं। बांग्लादेशी पुलिस अधिकारियों ने बताया कि उनके पास कोई कानूनी वकील नहीं है और अदालत ने उन्हें कंट्रोल ऑफ एंट्री एक्ट, 1952 के तहत जेल भेजने का आदेश दिया है। इस मामले की सुनवाई अब सितंबर में होगी।

पिता की गुहार: “हम गरीब हैं, अब कोर्ट ही सहारा है”

सुनाली के पिता ने इस पूरे मामले पर कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका’ दाखिल करते हुए अपनी चिंता व्यक्त की कि उनकी बेटी, जो जल्द ही बच्चे को जन्म देगी, जेल जैसी जगह पर रहकर कैसे एक सुरक्षित प्रसव कर पाएगी। उनका कहना है—“हम आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं। ऐसे में हमें अदालत की शरण में जाना पड़ा है।”

बड़ा सवाल: बच्चा किस देश का नागरिक होगा?

इस घटना ने सिर्फ एक परिवार को नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर उस संकट को सामने ला दिया है जिसमें नागरिकता की उलझनें किसी इंसान की जिंदगी को अधर में छोड़ देती हैं। अगर सुनाली का बच्चा जेल में पैदा होता है तो उसका भविष्य किस देश से जुड़ा माना जाएगा? भारत या बांग्लादेश—दोनों ही स्पष्ट जवाब देने से बचते दिख रहे हैं।


 

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