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(पवन सिंह)

विभाग का नाम है अंतर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान..हेड आफिस है अयोध्या में लेकिन सेवक लोग लखनऊ के जवाहर भवन के नवम तल में ही चस्पा रहना चाहते हैं...!! संस्कृति विभाग के तहत आने वाले इस शोध संस्थान को एक सख्त आडिट जांच की जरूरत है..। यह छोटा सा संस्थान है लेकिन राम के नाम पर झमाझम लूट मची हुई है।

यह अनोखा शोध संस्थान है जहां बिना किसी सक्षम स्वीकृति एवं पद के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर के पद पर रमेश चंद कार्यक्रम सहायक के पद पर अतुल एवं कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर संदीप की सेवाएं दे रहे हैं।  आउटसोर्सिंग प्रोवाइडर, एक कंपनी है, इंदिरा नगर लखनऊ में आफिस है। मजेदार बात यह है कि समूचे उत्तर प्रदेश में जहां बेचारे संविदा कर्मियों को 16-18 हजार वेतन मिल रहा है लेकिन यहां प्रभु कृपा के रिसाव से इन्हें 30 से ₹40000 प्रतिमाह पारिश्रमिक के रूप में भुगतान किया जा रहा है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एक  पूर्व निदेशक  द्वारा इंदिरा नगर स्थित उक्त फर्म को भारत सरकार से प्राप्त अनुदान में से लाखों लाख रुपए का अग्रिम भुगतान चेक के माध्यम से बिना किसी कार्य के किया गया। होना तो यह चाहिए कि विभाग समीक्षा बैठक के निर्णय अयोध्या मुख्य कार्यालय से संचलित किये जाएं, परंतु अभी भी यह सब शिविर कार्यालय लखनऊ में संचलित हो रहा है। 

संस्थान के बजट का वारा न्यारा करने के उद्देश से पूर्व निदेशक द्वारा एसएनए लखनऊ में शिविर कार्यालय तीन साल से संचालित कर पचासों लाख रुपए कैंप कार्यालय स्थापित करने पर व्यय किया गया है जबकि इससे पूर्व 34वर्ष एवं  वर्तमान में पुनः जवाहर भवन में संचालित है जो जांच  का विषय है। दरअसल, जांच एजेंसियों को इस शोध संस्थान पर व्यापक शोध करना चाहिए...।

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