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Up Kiran, Digital Desk: हाल ही में इजरायल द्वारा ईरान के सैन्य ठिकानों, परमाणु सुविधाओं और तेल-गैस संयंत्रों पर किए गए घातक हवाई हमलों ने दोनों देशों के बीच संघर्ष को और तीव्र कर दिया है। इस हमले को "ऑपरेशन राइजिंग लायन" नाम दिया गया, जिसमें 200 से अधिक लड़ाकू विमानों ने हिस्सा लिया। इस हमले में ईरान के चार वरिष्ठ सैन्य कमांडर, छह परमाणु वैज्ञानिक और 78 नागरिक मारे गए। इसके जवाब में ईरान ने ऑपरेशन "ट्रू प्रॉमिस 3" शुरू करते हुए इजरायल के प्रमुख शहरों, तेल अवीव और यरुशलम पर 150 मिसाइलें दागी। हालांकि, इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम "आयरन डोम" ने अधिकांश मिसाइलों को निष्क्रिय कर दिया, लेकिन कुछ मिसाइलें इजरायल के विभिन्न हिस्सों में जा गिरीं।
खामेनेई की स्थिति में बदलाव
शुरुआत में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इजरायल को बर्बाद करने की कसम खाई थी, लेकिन समय के साथ उनका जोश ठंडा पड़ गया है। अब खबरें आ रही हैं कि खामेनेई ने रूस से मदद की गुहार लगाई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल ने हमले के लिए वह समय चुना जब ईरान के प्रमुख सहयोगी, खासकर रूस, अपनी आंतरिक समस्याओं में उलझे हुए हैं और उन्हें ईरान को सैन्य सहायता देने में कठिनाई हो रही है।
इजरायल की रणनीति और रूस की स्थिति
इजरायल ने इस ऑपरेशन के लिए उस समय को चुना जब ईरान के सहयोगी देशों की स्थिति कमजोर थी। रूस, जो कि ईरान का सबसे बड़ा सैन्य सहयोगी रहा है, इस समय यूक्रेन युद्ध में बुरी तरह फंसा हुआ है। 2022 से जारी इस युद्ध ने रूस की सैन्य और आर्थिक ताकत को कमजोर कर दिया है, और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों ने रूस की अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया है। ऐसे में रूस ईरान को सैन्य सहायता देने की स्थिति में नहीं है।
रूस ने ईरान को S-300 और S-400 जैसी हवाई रक्षा प्रणालियां प्रदान की थीं, लेकिन अब वह न तो अतिरिक्त हथियार भेज सकता है और न ही सैन्य मदद दे सकता है। इसके साथ ही, रूस पर ईरान का उधार भी चढ़ा हुआ है, क्योंकि रूस को ड्रोन और मिसाइलें ईरान द्वारा सप्लाई की गई थीं। वर्तमान स्थिति में रूस को अपनी आंतरिक समस्याओं और आर्थिक संकट के कारण ईरान को सैन्य सहायता देना संभव नहीं हो पा रहा है।
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