Up Kiran, Digital Desk: प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत कई बड़े नेताओं के इस्तीफे के बाद भी नेपाल में Gen Z (युवा पीढ़ी) का गुस्सा शांत नहीं हुआ है. हिंसा की आशंका को देखते हुए बुधवार को नेपाली सेना ने देश भर में सुबह से शाम 5 बजे तक और फिर अगली सुबह 6 बजे तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया.
सेना ने साफ चेतावनी दी है कि इस दौरान किसी भी तरह के प्रदर्शन, तोड़फोड़, आगजनी या हमले को आपराधिक गतिविधि माना जाएगा और उससे सख्ती से निपटा जाएगा. इससे पहले मंगलवार शाम को जब आंदोलनकारियों ने त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में घुसने की कोशिश की, तो सेना ने एयरपोर्ट का भी नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया.
लेकिन सवाल यह है कि नेपाल में आखिर ऐसी अस्थिरता बार-बार क्यों पैदा होती है?
17 साल में 14 सरकारें, कभी पूरा नहीं हुआ कार्यकाल
नेपाल के लिए राजनीतिक अस्थिरता कोई नई बात नहीं है. पिछले 17 सालों में देश में 14 सरकारें बदल चुकी हैं, और 1990 में लोकतंत्र की बहाली के बाद से कोई भी सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है. इसके पीछे कई बड़ी वजहें हैं:
राजशाही से लोकतंत्र का अधूरा सफर: नेपाल का सदियों पुरानी राजशाही से एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बनने का सफर अधूरा और उथल-पुथल भरा रहा है. 2008 में 240 साल पुरानी राजशाही तो खत्म हो गई, लेकिन उसकी जगह एक ऐसा बहुदलीय fragmented माहौल बन गया जो हमेशा बंटा रहता है.
माओवादी विद्रोह की विरासत: 1996 से 2006 तक चले दशक भर के माओवादी विद्रोह ने देश की जड़ों को हिला कर रख दिया था. इस गृह युद्ध में 17,000 से ज्यादा जानें गईं. हालांकि 2008 में शांति समझौते के साथ यह खत्म हो गया, लेकिन इसने राजनीतिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया.
लगातार गठबंधन का टूटना: आनुपातिक प्रतिनिधित्व (proportional representation) वाली चुनावी प्रणाली की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना मुश्किल होता है, जिससे लगातार गठबंधन की सरकारें बनती हैं और टूटती रहती हैं. इससे नीतियों में कोई निरंतरता नहीं रहती और विकास रुका रहता है.
भ्रष्टाचार और कुशासन: भ्रष्टाचार और राजनीतिक संकट देश की एक स्थायी समस्या बन चुके हैं. हाल के समय में, केपी शर्मा ओली भी देश को राजनीतिक स्थिरता देने में नाकाम रहे. 2024 में सत्ता में आने पर उनसे उम्मीदें थीं, लेकिन उनकी अपनी हरकतों ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
नेपाल के राजनीतिक इतिहास पर एक नजर:
1951 से पहले: राणा वंश का शासन था, जहां प्रधानमंत्री का पद वंशानुगत होता था.
1961-1990: राजा महेंद्र ने पार्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया और "पंचायत" नामक एक केंद्रीकृत व्यवस्था लागू की, जिसमें सारी शक्ति राजा के पास थी.
1990: "जन आंदोलन" के बाद राजा बीरेंद्र को पार्टियों पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा और बहुदलीय लोकतंत्र की वापसी हुई.
1996-2006: वामपंथी माओवादियों ने एक हिंसक विद्रोह शुरू किया जो एक दशक तक चला.
2008: राजशाही को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया और नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना.
2015: नेपाल ने एक नया संविधान अपनाया.
इस tumultuous इतिहास की वजह से नेपाल आज भी एक स्थिर और मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए संघर्ष कर रहा है.

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