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Up Kiran Digital Desk: बिहार की सियासत एक बार फिर करवट ले रही है और इस बार केंद्र में है निषाद समाज। राज्य में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दल अब जातिगत समीकरणों को फिर से तराशने में जुट गए हैं। खासकर निषाद समुदाय, जो कभी हाशिये पर माना जाता था, अब 2025 के चुनावी समर में 'किंगमेकर' की भूमिका में नजर आ रहा है। इसी संदर्भ में वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की आगे की राजनीतिक चाल को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।
मुकेश सहनी की रणनीति और नया दांव
वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने हाल ही में ट्विटर पर घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी 2025 में 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। बाकी सीटों पर उनके सहयोगी दलों के प्रत्याशी होंगे। इस एक ट्वीट ने महागठबंधन में असहजता पैदा कर दी और राजनीतिक गलियारों में उनके अगले कदम को लेकर अटकलें शुरू हो गईं।
एनडीए की ओर से खुला आमंत्रण
इसी दौरान बिहार सरकार के मंत्री और हम सेक्युलर पार्टी के नेता संतोष सुमन ने मुकेश सहनी को खुले मंच से एनडीए में लौटने का न्योता दे दिया। सुमन का मानना है कि सहनी को वह सम्मान और अवसर महागठबंधन में नहीं मिल पा रहा, जिसकी उन्हें अपेक्षा थी। उनका यह बयान केवल आमंत्रण नहीं, बल्कि निषाद समुदाय को एक बार फिर एनडीए के पाले में लाने की एक रणनीतिक पहल भी है।
निषाद समाज के भविष्य की राजनीति
संतोष सुमन ने यह भी कहा कि अगर कोई गठबंधन सामाजिक न्याय और विकास दोनों के संतुलन को साध पा रहा है, तो वह केवल एनडीए है। ऐसे में निषाद समाज को स्थिरता और विकास की ओर ले जाने के लिए सहनी का उस दिशा में आना जरूरी है। उनका यह बयान साफ संकेत देता है कि 2025 के चुनाव में निषाद वोट बैंक पर खास नजर है।
पुराने रिश्ते, नए समीकरण
मुकेश सहनी पहले एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं, लेकिन 2022 में संबंधों में दरार आने के बाद वे महागठबंधन की ओर चले गए थे। हालांकि वहां भी उन्हें मनचाहा स्पेस नहीं मिल सका। अब जब चुनाव करीब हैं, तो एनडीए की ओर से फिर से उन्हें जोड़ने की कोशिश हो रही है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि एनडीए अपने पुराने सहयोगियों को वापस लाकर सामाजिक समीकरण को मजबूत करना चाहता है।
निषाद वोट बैंक पर सभी की नजरें
राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह पूरा घटनाक्रम किसी व्यक्तिगत बयानबाजी का परिणाम नहीं, बल्कि बड़ी सियासी योजना का हिस्सा है। निषाद समाज की संख्या भले ही सीमित हो, लेकिन कई सीटों पर उनका निर्णायक प्रभाव है। मुकेश सहनी, जो खुद को "सन ऑफ मल्लाह" कहकर समाज का प्रतिनिधि बताते हैं, ऐसे में उनके पाले में आने से यह वोट बैंक भी खिसक सकता है।
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