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Up Kiran, Digital Desk: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के चलते दक्षिण एशिया में एक और युद्ध की आशंका बनती नजर आ रही है। 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जहां भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में नया मोड़ आया है, वहीं बांग्लादेश में भी एक अलग संकट उभरता दिखाई दे रहा है। ये संकट म्यांमार में जारी गृहयुद्ध और उसमें फंसे रोहिंग्या मुसलमानों से जुड़ा है।
बांग्लादेश में बढ़ती मांग: रोहिंग्या के लिए अलग देश
बांग्लादेश में पाकिस्तान समर्थक कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने म्यांमार के अराकान राज्य (जिसे राखीन भी कहा जाता है) को लेकर एक नया विवादास्पद प्रस्ताव पेश किया है। पार्टी ने मांग की है कि म्यांमार में बहुसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के लिए एक अलग स्वतंत्र देश बनाया जाए।
जमात-ए-इस्लामी के नेताओं का कहना है कि बांग्लादेश में 11 से 12 लाख रोहिंग्या मुसलमान बेहद अमानवीय हालात में रह रहे हैं। उनके मुताबिक केवल भोजन और कपड़े देना इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता। उनका सुझाव है कि रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार के अराकान क्षेत्र में बसाकर उनके लिए एक अलग देश की स्थापना की जाए।
चीन की भूमिका और क्षेत्रीय तनाव
यह प्रस्ताव चीन के साथ जुड़ता है क्योंकि चीन और म्यांमार के बीच गहरे रिश्ते हैं। जमात-ए-इस्लामी के नेता सैयद अब्दुल्ला मोहम्मद ताहेर ने चीन के नेताओं से मुलाकात कर इस प्रस्ताव पर चर्चा की है। ताहेर का कहना है कि चीन अपने प्रभाव का उपयोग कर इस प्रस्ताव का समर्थन कर सकता है और इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभा सकता है। चीन ने आश्वासन दिया है कि वह इस प्रस्ताव को अपनी सरकार के समक्ष रखेगा।
पार्टी ने चीन से म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए अलग राज्य बनाने के लिए कदम उठाने की अपील की है। इसके अलावा, बांग्लादेश में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स जैसे तीस्ता प्रोजेक्ट, दूसरा पद्मा नदी पुल और एक नया बंदरगाह बनाने के लिए चीन से निवेश की मांग भी की गई है, जिनका भारत विरोध कर रहा है।
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