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Up Kiran, Digital Desk:2013 में जेडीयू और बीजेपी के बीच पुराना गठबंधन टूट गया था। इसके बाद नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़कर गैर-एनडीए दलों के समर्थन से सरकार बनाई। लेकिन असली सियासी भूचाल 2015 के विधानसभा चुनाव में आया।

2015: महागठबंधन की धमाकेदार वापसी

2015 के चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ मिलकर एक बड़ा गठबंधन बनाया। इसे 'महागठबंधन' नाम दिया गया। दूसरी ओर बीजेपी ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), हम और रालोसपा के साथ मिलकर एनडीए का नया चेहरा पेश किया।

बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत से उम्मीद थी कि राज्य में भी उसकी सरकार बनेगी। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले रहे।
महागठबंधन ने 178 सीटों पर जीत दर्ज कर प्रचंड बहुमत हासिल किया। एनडीए को केवल 58 सीटें मिलीं, जिनमें बीजेपी की झोली में महज 53 सीटें आईं। उनके सहयोगी दल लगभग ग़ायब ही रहे।

जेडीयू की रणनीति और सीटों का बंटवारा

नीतीश कुमार की अगुवाई में जेडीयू ने पिछली बार की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ा। कुल 101 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार उतारे, जो कि 2010 की तुलना में काफी कम था। उतनी ही सीटें राजद को दी गईं, जबकि कांग्रेस को 41 सीटें मिलीं।

इस संतुलित बंटवारे का फायदा महागठबंधन को हुआ। जेडीयू को 71, राजद को 80 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं। इससे साफ था कि नीतीश कुमार की योजना कारगर रही। इस चुनाव में तेजस्वी यादव ने भी जीत दर्ज की और पहली बार उपमुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार ने फिर से शपथ ली। विपक्ष की कमान डॉ. प्रेम कुमार को सौंपी गई।

राजनीति में फिर बदलाव: एनडीए में वापसी

हालात ज्यादा दिन तक स्थिर नहीं रहे। अंदरूनी खींचतान और पारदर्शिता की कमी ने गठबंधन में दरार पैदा कर दी। आरोप लगे कि लालू प्रसाद यादव सरकारी फैसलों में हस्तक्षेप कर रहे थे।
बीजेपी नेता सुशील मोदी ने तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सरकार को घेरना शुरू किया। नीतीश कुमार इस स्थिति से असहज हो गए और तेजस्वी से सफाई मांगी। जब संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया।

28 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार ने एनडीए में वापसी करते हुए दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सुशील मोदी को एक बार फिर उपमुख्यमंत्री बनाया गया। इस तरह 20 महीने पुरानी महागठबंधन सरकार का अंत हो गया।

बीजेपी की ‘स्वाभाविक’ पसंद: नीतीश कुमार

बीजेपी नेताओं का मानना रहा है कि बिहार में नीतीश कुमार और बीजेपी की जोड़ी ही सबसे स्वाभाविक गठबंधन है। डॉ. प्रेम कुमार जैसे वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि जनता भी यही चाहती है — एक ओर केंद्र में नरेंद्र मोदी और दूसरी ओर राज्य में नीतीश कुमार का नेतृत्व।

वो कहते हैं कि जनता विकास चाहती है, और जब भी गठबंधन टूटा, अस्थिरता का माहौल बना। इसलिए अंततः राज्य की जनता ने एनडीए को ही सत्ता सौंपी।