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Up Kiran, Digital News: जब हम घर में किसी संभावित विस्फोट के बारे में सोचते हैं तो हमारे दिमाग में सिलेंडर गैस स्टोव या एयर कंडीशनर जैसे उपकरणों की तस्वीरें उभरती हैं। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि आपके बाथरूम में लगा टॉयलेट कमोड भी विस्फोटक बन सकता है।

यह सुनकर भले ही हैरानी हो मगर भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहां शौचालयों में गैस भराव के कारण धमाके हुए हैं—कुछ मामूली तो कुछ जानलेवा।

विस्फोट की वजह: छिपी हुई गैसें

विशेषज्ञ बताते हैं कि बायोगैस मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी ज्वलनशील गैसें हमारे ड्रेनेज सिस्टम में समय के साथ इकट्ठा हो सकती हैं। जब ये गैसें शौचालय के पाइपों में जमा हो जाती हैं और किसी बाहरी तत्व—जैसे कि जलती माचिस या शॉर्ट सर्किट से संपर्क करती हैं—तो विस्फोट की स्थिति बन जाती है।

2019 में उत्तर प्रदेश के एक गांव में ऐसा ही मामला सामने आया था जब एक परिवार का शौचालय रात के वक्त तेज धमाके से उड़ गया। स्थानीय प्रशासन की रिपोर्ट में पाया गया कि सीवेज टैंक में गैस जमा हो रही थी जिसे नजरअंदाज किया गया।

कैसे बचें इस अदृश्य खतरे से

यह खतरा दुर्लभ ज़रूर है मगर इसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ करना समझदारी नहीं होगी। सुरक्षा विशेषज्ञ और प्लंबिंग इंजीनियर इन एहतियातों की सलाह देते हैं:

1. गैस डिटेक्टर का इस्तेमाल करें: बाजार में उपलब्ध मीथेन या हाइड्रोजन सल्फाइड डिटेक्टर बाथरूम में लगाना एक स्मार्ट विकल्प हो सकता है।

2. उचित वेंटिलेशन ज़रूरी है: बाथरूम में एग्जॉस्ट फैन या वेंटिलेशन विंडो होनी चाहिए ताकि गैस का जमाव न हो।

3. पाइपलाइनों का समय-समय पर निरीक्षण करें: अगर जल निकासी बाधित हो रही है या बदबू आ रही है तो यह संकेत हो सकता है कि गैस इकट्ठी हो रही है।

4. केमिकल क्लीनर का संयमित प्रयोग करें: ज्यादा मात्रा में उपयोग करने से रासायनिक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होती हैं जिससे गैस बनने की संभावना बढ़ जाती है।

5. अप्रयुक्त शौचालयों में नियमित रूप से पानी डालें: शुष्क ड्रेनेज सिस्टम गैस रिसाव का कारण बन सकता है। दिन में एक बार थोड़ा पानी डालना काफी होता है।

खतरे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

बाथरूम हमारे घर का एक शांत और निजी स्थान होता है। मगर वहीं पर अगर लापरवाही बरती जाए तो यह जगह एक विस्फोटक ज़ोन में बदल सकती है। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां बायोगैस सिस्टम का इस्तेमाल बढ़ रहा है वहां इस जानकारी को जन-जागरूकता अभियानों में शामिल किया जाना चाहिए।

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