
Up Kiran, Digital Desk: कर्नाटक में स्कूलों में हिंदी को एक अनिवार्य विषय बनाने के खिलाफ एक ऑनलाइन याचिका को भारी समर्थन मिल रहा है। Change.org पर शुरू की गई इस याचिका पर अब तक 25,000 से अधिक लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं, जो इस मुद्दे पर लोगों के गहरे असंतोष को दर्शाता है।
कन्नड़ ग्राहक कूटा' नामक एक उपभोक्ता मंच द्वारा शुरू की गई इस याचिका में तर्क दिया गया है कि हिंदी को अनिवार्य करना "भाषाई साम्राज्यवाद" (linguistic imperialism) है और यह छात्रों पर एक भाषा थोपने जैसा है। याचिका में कहा गया है कि यह कदम न केवल 'त्रि-भाषा सूत्र' (three-language formula) की मूल भावना के खिलाफ है, बल्कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के भी विरुद्ध है, जो मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देती है।
याचिकाकर्ता संतोष कुमार के. का कहना है कि त्रि-भाषा सूत्र का मतलब यह नहीं है कि तीसरी भाषा अनिवार्य रूप से हिंदी ही हो। छात्रों को यह चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे तीसरी भाषा के रूप में कन्नड़, संस्कृत, या कोई अन्य भारतीय या विदेशी भाषा पढ़ना चाहते हैं।
यह मुद्दा कर्नाटक और अन्य दक्षिणी राज्यों में लंबे समय से विवाद का विषय रहा है, जहां कई लोग इसे केंद्र द्वारा अपनी भाषा और संस्कृति पर एक हमले के रूप में देखते हैं।
इस याचिका का उद्देश्य सरकार पर दबाव बनाना है ताकि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। हस्ताक्षर अभियान पूरा होने के बाद इस याचिका को कर्नाटक के मुख्यमंत्री को सौंपा जाएगा, ताकि छात्रों के भविष्य और राज्य की भाषाई पहचान को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया जा सके।
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