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Up Kiran, Digital Desk: मधेपुरा से विधायक प्रो. चंद्रशेखर का टिकट अभी भी अधर में लटका है। मंगलवार की रात उन्हें राबड़ी आवास बुलाया गया, लेकिन उन्हें सिंबल नहीं सौंपा गया। चर्चाओं का बाज़ार गर्म है कि शरद यादव के बेटे शांतनु यादव को इस सीट से उतारा जा सकता है। चंद्रशेखर ने बाहर निकलते समय कहा कि यह सिर्फ औपचारिक भेंट थी। पर सवाल यह बना हुआ है कि जब नाम पर सहमति ही नहीं बनी, तो उन्हें बुलाया क्यों गया?

तेजस्वी की गैरमौजूदगी में हुआ सिंबल वितरण

तेजस्वी यादव दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेताओं से बातचीत में व्यस्त थे, वहीं पटना में लालू प्रसाद यादव की मौजूदगी में कई उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह (सिंबल) बांट दिए गए। बताया जा रहा है कि यह चिन्ह पहले से तैयार रखे गए थे, ताकि कांग्रेस से सीटों पर सहमति बनते ही उन्हें जारी किया जा सके।

कांग्रेस से बनी बात या बिगड़ी?

तेजस्वी यादव की दिल्ली यात्रा का मकसद कांग्रेस के साथ सीटों पर अंतिम सहमति बनाना था। उन्होंने केसी वेणुगोपाल से मुलाकात की, लेकिन राहुल गांधी से तय मीटिंग नहीं हो पाई। ऐसे में गठबंधन का फॉर्मूला अभी अधूरा है। तेजस्वी की अनुपस्थिति में ही सिंबल बंटने लगे, जिससे बाद में विवाद खड़ा हुआ।

बिना सहमति बांटे गए सिंबल, फिर वापस लिए गए

मनेर से भाई वीरेंद्र, मटिहानी से बोगो सिंह, परबत्ता से डॉ. संजीव, हथुआ से राजेश कुशवाहा, और संदेश से दीपू यादव को सिंबल सौंपे गए थे। लेकिन देर रात इन सभी से सिंबल वापस ले लिए गए। वजह? तेजस्वी की मंजूरी के बिना सिंबल देना पार्टी लाइन के खिलाफ था।

सहयोगी दलों की सीटों पर भी उठे सवाल

सबसे चौंकाने वाला घटनाक्रम तब हुआ जब एक ऐसी सीट से RJD की तरफ से सिंबल देने की तैयारी चल रही थी, जिस पर गठबंधन के एक सहयोगी दल के प्रमुख खुद चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं। जैसे ही उन्हें इस बात की जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत RJD के राज्यसभा सांसद को फोन कर आपत्ति जताई। फिर आनन-फानन में उस उम्मीदवार को सिंबल नहीं दिया गया और बाकी के चिन्ह भी वापस मंगवा लिए गए।

राबड़ी आवास बना राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र

10 सर्कुलर रोड स्थित राबड़ी देवी का आवास एक बार फिर सियासी हलचलों का केंद्र बन गया। यहीं पर उम्मीदवारों को बुलाया गया, यहीं पर सिंबल बांटे गए और फिर यहीं से वापस भी लिए गए। सूत्रों के अनुसार कुछ उम्मीदवार ऐसे भी थे जिनके नाम पर पार्टी के भीतर अब तक पूर्ण सहमति नहीं बनी थी, फिर भी उन्हें बुलाया गया।

जनता में भ्रम और कार्यकर्ताओं में बेचैनी

इस घटनाक्रम से जहां उम्मीदवारों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है, वहीं जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी भ्रम फैल गया है। जिन नेताओं की तस्वीरें सिंबल लेते सोशल मीडिया पर वायरल हुई थीं, उन्हीं से कुछ घंटों बाद सिंबल वापस लिया गया। इससे पार्टी की गंभीरता और रणनीतिक तैयारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं।