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Up Kiran, Digital Desk: भारत का इतिहास जितना प्राचीन है, उतना ही वैभवशाली भी। महलों, किलों, सुनहरे सिंहासनों और विशाल सेनाओं से भरी कहानियां पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही हैं। लेकिन इन कहानियों में अक्सर एक सवाल अनकहा रह जाता है राजा, महाराजा और सम्राट में सबसे निर्णायक शक्ति किसके पास होती थी?

राजा कौन होता है

राजा को एक राज्य का मुखिया माना जाता था। उसकी शक्ति राज्य की सीमाओं तक सीमित रहती थी। प्रशासन, न्याय और सुरक्षा की जिम्मेदारी उसी के हाथों में होती थी। वह कानून बनाता, अपराधियों को दंड देता और जनता के विवादों का निपटारा करता। लेकिन यही सत्ता उसकी सीमा भी थी राजा का अधिकार अपने राज्य से बाहर नहीं चल पाता था।

महाराजा के पास क्या अधिकार

राजा से ऊपर महाराजा का पद आता था। महाराजा न केवल अपने बड़े राज्य का शासक होता बल्कि कई छोटे-छोटे राज्यों पर भी उसका प्रभाव रहता। सम्बद्ध राजाओं को कर देना और युद्ध के समय उसकी सहायता करना अनिवार्य माना जाता। यही कारण था कि महाराजा की शक्ति राजा से कई गुना अधिक होती थी। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि महाराजा किसी राजा के बनाए कानून को बदलने की क्षमता रखता था, जो उसके अधिकार की सीमा को और स्पष्ट करता है।

कौन होता है सम्राट

तीनों में सबसे उच्च पद होता था सम्राट का। सम्राट का प्रभाव केवल एक राज्य या कुछ रियासतों तक सीमित नहीं होता बल्कि संपूर्ण साम्राज्य उसकी देखरेख में आता। राजाओं और महाराजाओं को उसकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ती। सम्राट के आदेश पूरे देश पर लागू होते और उसकी सेना लाखों की संख्या में होती। भारत के इतिहास में सम्राट अशोक और सम्राट अकबर जैसे नाम न सिर्फ साम्राज्य निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि उनके शासनकाल में लिए गए बड़े फैसलों ने भारतीय समाज और संस्कृति की धारा हमेशा के लिए बदल दी।

आखिरी फैसला किसका चलता था

राजा और महाराजा अपने क्षेत्र की सत्ता संभालते थे लेकिन आखिरी और सर्वोच्च फैसला सम्राट का ही होता था। यही कारण है कि सम्राट को प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था का शिखर माना गया।

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