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Up Kiran, Digital Desk: राजस्थान में सरकारी स्कूल अब शिक्षा का नहीं, लापरवाही का प्रतीक बनते जा रहे हैं। बीते कुछ दिनों में दो अलग-अलग जिलों में बच्चों की जान स्कूल की लचर व्यवस्था की भेंट चढ़ गई। सवाल सिर्फ इमारतों की मजबूती का नहीं है, बल्कि उस सरकारी व्यवस्था का है जो बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने में बार-बार असफल हो रही है।
अरबाज़ की मौत से हिल गया जैसलमेर, लेकिन गलती किसकी थी?
सोमवार को जैसलमेर के पूणमनगर गांव में स्थित राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में उस वक्त मातम पसर गया, जब स्कूल की छुट्टी के बाद अचानक भारी गेट गिर गया और 9 वर्षीय छात्र अरबाज़ खान की मौके पर ही मौत हो गई। हैरानी की बात यह है कि अरबाज़ इस स्कूल में पहली कक्षा का छात्र था, और वह किसी गेट से टकराकर नहीं, बल्कि सिस्टम की चूक से कुचला गया।
स्थानीय लोगों और परिजनों का दावा है कि स्कूल प्रशासन को गेट की खस्ता हालत की जानकारी थी, लेकिन महीनों से इसकी अनदेखी की जा रही थी। जैसे ही छुट्टी की घंटी बजी, बच्चों की भीड़ बाहर निकलने लगी और तभी जर्जर गेट बच्चों पर गिर पड़ा। गांववालों ने शव के साथ धरना देकर प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
झालावाड़ में भी स्कूल बना था मौत का फंदा
इस दर्दनाक घटना से तीन दिन पहले झालावाड़ में भी एक सरकारी स्कूल की इमारत ढह गई थी, जिसमें सात बच्चों की मौत हो गई थी। दोनों घटनाओं के बीच कुछ दिन का ही अंतर है, लेकिन दोनों में एक समानता है—लापरवाही और जमीनी स्तर पर निगरानी का अभाव।
सरकारी आदेश और ज़मीनी हकीकत में फर्क
झालावाड़ की घटना के बाद राज्य सरकार हरकत में जरूर आई। शिक्षा विभाग को नए दिशा-निर्देश जारी किए गए, जिनमें अधिकारियों की छुट्टियों पर रोक, स्कूल भवनों का तत्काल निरीक्षण और GIS टैगिंग जैसे कदम उठाने की बात कही गई। लेकिन जैसलमेर की घटना बताती है कि कागज़ पर उठाए गए कदम ज़मीन पर असर नहीं छोड़ पा रहे हैं।
बच्चों की ज़िंदगी को आंकड़ों में मत बदलिए
हर हादसे के बाद एक रिपोर्ट, एक सर्वे और कुछ तात्कालिक तबादले होते हैं। लेकिन क्या अरबाज़ की मौत को भी केवल एक और आंकड़ा मान लिया जाएगा? क्या सरकार यह समझ पाएगी कि स्कूलों की दीवारें केवल ईंटों से नहीं बनतीं, बल्कि उस भरोसे से बनती हैं जो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजते वक्त रखते हैं?
शिक्षा व्यवस्था का ‘मरम्मत’ कब होगा?
अगर स्कूल की दीवारें गिर रही हैं, गेट बच्चे कुचल रहे हैं और छतों से मलबा गिर रहा है, तो सवाल सिर्फ निर्माण की गुणवत्ता का नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता का भी है। शिक्षा विभाग की ज़िम्मेदारी सिर्फ परीक्षा कराना नहीं, बल्कि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है।
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