Up Kiran, Digital Desk: हर साल ठंड का मौसम आते ही देश के कई हिस्सों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। खासकर दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य इस समय पराली जलाने की समस्या से जूझ रहे हैं। अब जबकि दिवाली का वक्त भी आया, तो प्रदूषण की स्थिति और भी गंभीर हो गई है। हालांकि, पराली जलाने को लेकर सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है, लेकिन असल सवाल यह है कि इन संकटों का स्थायी समाधान किसके पास है? क्या सरकारें प्रदूषण से निपटने के लिए केवल बयानबाजी तक सीमित रहेंगी, या फिर इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाएंगी?
सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी, लेकिन समाधान का खाका नहीं
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई थी। पंजाब और हरियाणा की सरकारों को भी चेतावनी दी गई थी कि वे प्रदूषण पर नियंत्रण पाएं। लेकिन सवाल यह है कि क्या अब तक कोई ठोस योजना बनी है? क्या प्रदूषण कम हुआ है, या फिर इसे लेकर कुछ कारगर कदम उठाए गए हैं? इस बार भी दिल्ली में दिवाली के बाद प्रदूषण की स्थिति बेहद खतरनाक हो गई है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 301 को पार कर गया है, जो इमरजेंसी स्थिति की ओर इशारा करता है।
वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर: दिल्ली, पंजाब और आसपास के क्षेत्र
दिल्ली में प्रदूषण में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन पड़ोसी राज्य पंजाब और आसपास के इलाकों में स्थिति अब भी नाजुक बनी हुई है। 27 अक्टूबर तक, दिल्ली में प्रदूषण में गिरावट देखी गई, लेकिन पंजाब में वायु गुणवत्ता सूचकांक अभी भी काफी खतरनाक है। लुधियाना, जालंधर, अमृतसर और पटियाला जैसे शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 200 से ऊपर रहा, जो कि चेतावनी का संकेत है।
वहीं, एनसीआर के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी प्रदूषण बढ़ा है। खासकर पंजाब में, जहां प्रदूषण का स्तर दिल्ली से कम है, लेकिन स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। 27 अक्टूबर को दिल्ली के बहादुरगढ़ में AQI 387 तक पहुंच गया था, जो कि बहुत ही गंभीर स्थिति को दर्शाता है।
प्रदूषण केवल भारत नहीं, पाकिस्तान का भी असर
यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान में भी प्रदूषण का कारण बन रहा है। नासा की रिपोर्ट और अन्य शोधों के अनुसार, पाकिस्तान के पंजाब में भी पराली जलाने की घटनाएं ज्यादा हैं। भारतीय पंजाब के मुकाबले पाकिस्तानी पंजाब में पराली जलाने की समस्या अधिक गंभीर है। यह स्थिति सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के लिए भी चिंता का विषय बन चुकी है।
किसानों की समस्या: पराली जलाना मजबूरी, ना कि मंशा
प्रदूषण के इस संकट के केंद्र में किसान हैं। छोटे और सीमांत किसानों के पास साधन नहीं होते कि वे पराली से किसी प्रकार के उत्पाद बना सकें। खेती मौसम पर निर्भर है, और यदि मौसम अचानक बिगड़ जाए, तो किसान को अपनी फसल का नुकसान हो सकता है। ऐसे में किसानों के पास विकल्प नहीं बचता और वे मजबूरी में पराली जलाने को विवश हो जाते हैं। सरकारें चाहे जो भी योजना बनाएं, छोटे किसानों की समस्याओं का समाधान किए बिना प्रदूषण पर काबू पाना मुश्किल है।
प्रदूषण पर काबू पाने के उपाय: क्लाउड सीडिंग और पराली के व्यावसायिक उपयोग पर जोर
दिल्ली सरकार ने इस बार क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश की बात की है, जो प्रदूषण को कम करने का एक संभावित उपाय हो सकता है। हालांकि, यह केवल एक अस्थायी समाधान हो सकता है, और इसे लंबी अवधि तक कारगर नहीं माना जा सकता। इसके बजाय, अगर सरकारें पराली के व्यावसायिक उपयोग पर ध्यान केंद्रित करें, जैसे कि उसे जैविक ईंधन या अन्य उत्पादों में बदलना, तो शायद पराली जलाने की समस्या का स्थायी हल मिल सकता है।
प्रदूषण से बचाव के लिए जागरूकता की जरूरत
दिल्ली में प्रदूषण का संकट कोई नई बात नहीं है। 1985 में भी प्रदूषण के कारण लोग बीमार हो रहे थे, जब कीर्ति नगर जैसे इलाकों में जहरीली हवा ने लोगों की सेहत पर असर डाला था। तब से अब तक सरकारें कई योजनाएं बना चुकी हैं, लेकिन धरातल पर उन योजनाओं का असर बहुत कम दिखा है। अब समय आ गया है कि प्रदूषण पर काबू पाने के लिए सिर्फ कागजी योजनाओं से नहीं, बल्कि ठोस और व्यावहारिक कदमों से इसे हल किया जाए।
_549886508_100x75.png)
_397984810_100x75.png)
_1797433355_100x75.png)
_318461928_100x75.png)
_884555295_100x75.png)