Up kiran,Digital Desk : कहते हैं कि इंसान के जाने के बाद उसका दुनिया से वास्ता खत्म हो जाता है, लेकिन दिल्ली और फरीदाबाद से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल मामले में जो खुलासा हुआ है, वह रोंगटे खड़े करने वाला है। क्या कोई व्यक्ति अपनी मौत के 30 साल बाद जमीन बेचने के लिए सरकारी दफ्तर आ सकता है? प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच कहती है—कागजों पर ऐसा हुआ है।
मामला फरीदाबाद की चर्चित 'अल-फलाह यूनिवर्सिटी' के कुलाधिपति (Chancellor) जवाद अहमद सिद्दीकी से जुड़ा है, जिसे दिल्ली कार धमाके और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। अब ईडी की चार्जशीट में उनके काले कारनामों की ऐसी लिस्ट सामने आई है जिसने सबको सन्न कर दिया है।
साजिश: मरे हुए लोगों को कागज पर 'जिंदा' किया गया
ईडी की जांच में पता चला है कि जवाद सिद्दीकी ने दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में एक बड़ी जमीन हड़पने के लिए फर्जीवाड़े की सारी हदें पार कर दीं। यह जमीन गरीब हिंदुओं के नाम पर थी। जांच में जो बात सबसे ज्यादा चौंकाने वाली है, वह यह है कि जिन लोगों के नाम पर जमीन थी, उनकी मौत 1972 से 1998 के बीच हो चुकी थी।
लेकिन, सिद्दीकी और उनके गुर्गों ने 7 जनवरी 2004 की तारीख में एक 'जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी' (GPA) तैयार करवाई। हैरानी की बात यह है कि इस दस्तावेज पर उन लोगों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान मौजूद हैं, जो उस तारीख से दशकों पहले दुनिया छोड़ चुके थे। यानी, मुर्दों के नाम का इस्तेमाल करके पूरी जमीन सिद्दीकी से जुड़े 'तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन' के नाम करवा ली गई।
आतंकी कनेक्शन और मनी लॉन्ड्रिंग
यह मामला सिर्फ जमीन हड़पने तक सीमित नहीं है। जांच एजेंसियों को शक है कि इस जमीन घोटाले से कमाया गया पैसा आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जा रहा था। अल-फलाह यूनिवर्सिटी का नाम हाल ही में फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल और दिल्ली कार धमाके की साजिश में भी आया था, जिसके बाद इसी यूनिवर्सिटी के तीन डॉक्टरों को गिरफ्तार किया गया था।
जांच एजेंसियों का मानना है कि जवाद सिद्दीकी ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए पहले जमीनों पर कब्जा किया और फिर उस पैसे को इधर-उधर (Money Laundering) करके गलत कामों में लगाया।
कैसे होता है 'GPA' का खेल?
आम आदमी के लिए यह समझना जरूरी है कि 'जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी' (GPA) एक ऐसा कानूनी दस्तावेज होता है, जिसके जरिए कोई व्यक्ति अपनी प्रॉपर्टी के फैसले लेने का अधिकार किसी दूसरे को देता है। सिद्दीकी ने इसी नियम का गलत फायदा उठाया। चूंकि असली मालिक मर चुके थे और उनके वारिस शायद अपनी जमीनों के बारे में जानते नहीं थे या कमजोर थे, इसलिए फर्जी जीपीए बनाकर जमीनों को अपने ट्रस्ट के नाम ट्रांसफर करा लिया गया।
फिलहाल, जवाद सिद्दीकी 18 नवंबर से हिरासत में है और ईडी अब उसकी एक-एक फाइल खंगाल रही है। यह जांच बताती है कि कैसे शिक्षा के मंदिर की आड़ में अपराध का साम्राज्य चलाया जा रहा था।




