img

Up Kiran, Digital Desk: अक्सर हमारी जिंदगी में ऐसे पल आते हैं जब कोई काम पहाड़ जैसा बड़ा और मुश्किल लगने लगता है. हम अपनी पूरी ताकत और हिम्मत जुटा लेते हैं, फिर भी समझ नहीं आता कि शुरुआत कहाँ से करें. ऐसा लगता है मानो सामने एक बड़ी, सुनसान और मजबूत लंका खड़ी है और हम उसे पार करने की तरकीब सोच रहे हैं.

ऐसी ही एक मुश्किल प्रभु श्री राम के भक्त हनुमान जी के सामने भी आई थी. जब वे विशाल समुद्र को लांघकर लंका के किनारे पहुंचे, तो उनके सामने सोने की लंका का विशाल और भव्य रूप था. उस नगरी में बड़े-बड़े बलवान राक्षस पहरा दे रहे थे. हनुमान जी अगर चाहते तो अपने विशाल रूप से सबको डरा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

यहीं पर सुंदरकांड की एक बहुत ही गहरी चौपाई हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती है:

"मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥

इसका सीधा सा मतलब है कि हनुमान जी ने मच्छर जैसा बहुत छोटा रूप धारण किया और भगवान श्री राम का नाम लेकर लंका में प्रवेश कर गए उन्होंने अपनी शक्ति का दिखावा नहीं किया, बल्कि अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया. वे जानते थे कि बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमेशा बड़ा दिखना जरूरी नहीं होता. कभी-कभी छोटा बनकर, बिना किसी की नजर में आए भी बड़े-बड़े काम किए जा सकते हैं.

यह चौपाई हमें सिखाती है कि जीवन की बड़ी चुनौतियों का सामना सीधे टकराव से करना हमेशा सही नहीं होता. कई बार हमें अपनी रणनीति बदलनी पड़ती है. ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी ने किया. उन्होंने पहले छोटे रूप में लंका के अंदर जाकर पूरी स्थिति को समझा और फिर ऐसा पराक्रम दिखाया कि पूरी लंका दहन हो गई.

अगर आप भी किसी बड़ी मुश्किल से गुजर रहे हैं, तो हनुमान जी के इस गुण को याद रखें. जरूरी नहीं कि हर बार अपनी पूरी ताकत झोंक दी जाए. कभी-कभी शांत रहकर, छोटा बनकर और सही समय का इंतजार करके भी बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती जा सकती है. यह चौपाई हमें आत्मविश्वास देती है और बताती है कि जब मन में अपने प्रभु या लक्ष्य के प्रति सच्ची श्रद्धा हो, तो रूप छोटा हो या बड़ा, सफलता मिलना तय है

--Advertisement--