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Up Kiran, Digital Desk: पूरी दुनिया की नजरें सियोल में होने वाली एक बहुत बड़ी मीटिंग पर टिकी हुई हैं. यहां अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक दूसरे से मुलाकात करने वाले हैं. ये मीटिंग सिर्फ दो नेताओं की मुलाकात नहीं है, बल्कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच चल रही तनातनी का भविष्य तय करेगी. सवाल ये है कि क्या इस मुलाकात से दोनों देशों के बीच चल रहा ट्रेड वॉर रुकेगा या फिर दुनिया एक नए आर्थिक भूचाल के लिए तैयार हो जाए?

क्यों है ये मीटिंग इतनी खास: अमेरिका और चीन के बीच काफी समय से ट्रेड वॉर चल रहा है. दोनों देश एक-दूसरे के सामान पर भारी टैक्स लगा रहे हैं, जिससे पूरी दुनिया का बाजार हिला हुआ है. इस तनाव की शुरुआत तब हुई, जब चीन ने रेयर-अर्थ मिनरल्स (Rare-Earth Minerals) के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी. ये ऐसे मिनरल्स हैं, जो स्मार्टफोन से लेकर लड़ाकू विमान तक, हर मॉडर्न टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होते हैं और चीन इसका सबसे बड़ा सप्लायर है.

इसके जवाब में ट्रंप ने भी एक बड़ा कदम उठाते हुए चीन से आने वाले हर सामान पर 100% टैरिफ यानी टैक्स लगाने की धमकी दे दी.इन दोनों ही फैसलों ने दुनिया भर के बाजारों में खलबली मचा दी.

क्या बातचीत से निकलेगा कोई हल?

इतने तनाव के बावजूद, दोनों देशों के बीच बातचीत के रास्ते अभी भी खुले हैं. पर्दे के पीछे दोनों देशों के सलाहकार लगातार संपर्क में हैं और कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं. बाजार की हालत ऐसी है कि कोई भी छोटी-बड़ी खबर उसे ऊपर-नीचे कर देती है. निवेशक डरे हुए हैं और इस मीटिंग का इंतजार कर रहे हैं.

दोनों देशों के अपने-अपने इरादे: ट्रंप चाहते हैं कि इस मीटिंग में एक ऐसी डील हो, जिससे चीन अपने रेयर-अर्थ मिनरल्स पर लगी रोक हटाए और अमेरिका भी बदले में टैरिफ कम करे. वहीं, चीन के एक्सपर्ट्स का कहना है कि बीजिंग किसी भी तरह के दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है.

चीन ने भी अमेरिका को जवाब देने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे ट्रंप के सपोर्टर्स को सीधा नुकसान हो. अमेरिका के जिन इलाकों में सोयाबीन की खेती होती है, वहां के किसान परेशान हैं, क्योंकि चीन ने उनसे सोयाबीन खरीदना बंद कर दिया है.

इस बीच, एप्पल और नाइकी जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां चीन में अपना प्रोडक्शन कम करके भारत और दूसरे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में फैक्ट्रियां लगा रही हैं, ताकि भविष्य में होने वाले किसी भी नुकसान से बच सकें.

कौन पड़ेगा किस पर भारी: ये मीटिंग सिर्फ एक कारोबारी समझौता नहीं, बल्कि अपनी ताकत दिखाने का भी एक मौका है. ट्रंप के सलाहकार मानते हैं कि अगर इस बार चीन झुक गया, तो भविष्य में अमेरिका के लिए रास्ते आसान हो जाएंगे. वहीं, चीन के जानकार कहते हैं कि शी जिनपिंग 13 साल से सत्ता में हैं और उन्हें अपनी ताकत साबित करने के लिए किसी फोटो-ऑप की जरूरत नहीं है.

फिलहाल, दुनिया एक हाई-वोल्टेज ड्रामे की तरह इस मुलाकात को देख रही है. एक छोटी सी गलती भी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला सकती है. अब देखना यह है कि इस नूरा-कुश्ती में कौन पहले झुकता है.