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Up Kiran, Digital Desk: मेडिकल डिवाइस सेक्टर में पारदर्शिता लाने और डॉक्टरों और कंपनियों के बीच चल रहे 'गिफ्ट के खेल' को खत्म करने के लिए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है. फार्मास्यूटिकल्स विभाग (DoP) ने मेडिकल डिवाइस कंपनियों के लिए मार्केटिंग के नियमों में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया है, जिसका इंडस्ट्री ने भी स्वागत किया है. इस नए नियम का सीधा असर कंपनियों के काम करने के तरीके, डॉक्टरों को मिलने वाली सुविधाओं और अंततः मरीजों के हितों पर पड़ेगा.

क्या है सबसे बड़ा बदलाव: नए नियमों के तहत, अब मेडिकल डिवाइस बनाने वाली कंपनियां डॉक्टरों को मुफ्त में 'इवैल्यूएशन सैंपल' दे सकती हैं. इसका मकसद यह है कि डॉक्टर किसी भी डिवाइस को इस्तेमाल करने से पहले उसे अच्छी तरह से जांच-परख सकें और उसके फीचर्स को समझ सकें. हालांकि, इस पर एक सीमा लगाई गई है - कोई भी कंपनी अपनी कुल घरेलू बिक्री का केवल 2% तक ही मुफ्त सैंपल के रूप में दे सकती है.

'गिफ्ट कल्चर' पर लगाम, हर खर्च का देना होगा हिसाब

इस नियम का सबसे बड़ा और असरदार पहलू यह है कि अब कंपनियों पर पूरी तरह से नकेल कस दी गई है.

हर पैसे का हिसाब: कंपनियों को अब डॉक्टरों के लिए आयोजित किए गए कार्यक्रमों, स्पॉन्सरशिप और विदेश यात्राओं पर किए गए हर खर्च का ब्यौरा एक नए फॉर्मेट में सरकार को देना होगा.

CEO होंगे जिम्मेदार: कंपनी के CEO या मैनेजिंग डायरेक्टर को हर साल मार्केटिंग पर हुए खर्च का एक घोषणापत्र दाखिल करना होगा. वित्तीय वर्ष 2025 के लिए यह डेडलाइन 30 सितंबर तक बढ़ा दी गई है.

नियम तोड़ने पर कड़ी सजा: इन नियमों का उल्लंघन करने पर अब पहले से कहीं ज़्यादा सख्त सज़ा का प्रावधान किया गया है.

इंडस्ट्री ने किया फैसले का स्वागत

एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री (AiMeD) ने सरकार के इस कदम की सराहना की है. AiMeD के फोरम कोऑर्डिनेटर, राजीव नाथ ने कहा, "हम इन नए नियमों का स्वागत करते हैं. इससे मार्केटिंग में नैतिकता और पारदर्शिता आएगी, जिससे कंपनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी. इसका सबसे बड़ा फायदा मरीजों को मिलेगा, जिन्हें सुरक्षित डिवाइस और भरोसेमंद जानकारी मिलेगी और वे कंपनियों के भ्रामक प्रचार से बचेंगे."

यह नया नियम भारत के तेजी से बढ़ते MedTech सेक्टर में जवाबदेही और निष्पक्षता लाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.

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