Up Kiran, Digital Desk: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर पुणे का 'जमीन घोटाला' गर्माया हुआ है. लंबे समय से जिस विवादास्पद भूमि सौदे की जांच चल रही थी, उसकी रिपोर्ट अब सामने आ गई है. अच्छी ख़बर ये है कि इस रिपोर्ट में उप मुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ पवार का नाम शामिल नहीं है, जिससे उन्हें बड़ी राहत मिली है.
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा मामला पुणे के मुंडवा इलाके में 40 एकड़ सरकारी जमीन की बिक्री से जुड़ा है, जिसका सौदा लगभग 300 करोड़ रुपये में हुआ था. यह ज़मीन Amadea Enterprises LLP नामक कंपनी को बेची गई थी, जिसमें पार्थ पवार एक साझेदार हैं. शुरू से ही आरोप लग रहे थे कि ये सरकारी जमीन गलत तरीके से बेची गई है और इसमें करीब 21 करोड़ रुपये के स्टाम्प शुल्क की भी चोरी हुई है. ज़मीन की वास्तविक कीमत 1,800 करोड़ रुपये तक आँकी जा रही थी, जबकि इसे महज 300 करोड़ में बेचा गया, जिससे राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ.
रिपोर्ट ने किस पर उठाई उंगली?
एक जॉइंट इंस्पेक्टर जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन (IGR) के नेतृत्व में बनी तीन सदस्यीय समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में तीन लोगों को दोषी पाया है. इनमें निलंबित सरकारी अधिकारी (सब-रजिस्ट्रार) रवींद्र तारू, Digvijay Patil (जो Amadea कंपनी के निदेशक और पार्थ पवार के व्यापारिक सहयोगी भी हैं), और Sheetal Tejwani (विक्रेताओं की ओर से पावर ऑफ अटॉर्नी धारक) शामिल हैं. इन तीनों के नाम पुणे पुलिस द्वारा दर्ज FIR में भी पहले से मौजूद हैं.
पार्थ पवार को राहत, लेकिन क्यों?
जांच समिति की रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया है कि चूंकि पार्थ पवार का नाम जमीन की खरीद-बिक्री के किसी भी दस्तावेज़ पर मौजूद नहीं था, इसलिए उन्हें इस जांच में दोषी नहीं ठहराया जा सकता. यह उन अटकलों पर विराम लगाता है, जिनमें पार्थ पवार की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे थे. हालाँकि, विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इस 'क्लीन चिट' पर सवाल उठाए हैं और एक न्यायिक जांच की मांग की है. महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने पारदर्शिता का आश्वासन देते हुए कहा है कि सभी संबंधित पक्षों की सुनवाई की जाएगी.
आगे क्या होगा?
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस तरह के धोखाधड़ी वाले सौदों को रोकने के लिए कई उपाय भी सुझाए हैं. इस बीच, IGR कार्यालय ने Amadea Enterprises LLP को सात दिनों के भीतर स्टाम्प ड्यूटी जमा करने का नोटिस भी भेजा है. इस मामले में अभी भी कई कमेटियां जांच कर रही हैं और आने वाले समय में कुछ और बड़े खुलासे हो सकते हैं.
यह मामला एक बार फिर ज़मीन सौदों में पारदर्शिता और सरकारी प्रक्रियाओं की खामियों को उजागर करता है, जहाँ सरकारी ज़मीनों को भी अनियमित तरीके से बेचा जा रहा है और राजस्व को नुकसान पहुंचाया जा रहा है.

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