
नई दिल्ली/इस्लामाबाद: भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर एक बार फिर सीज़फायर का ऐलान किया गया है। दोनों देशों की सेनाओं ने संयुक्त बयान जारी कर यह घोषणा की कि वे 2003 के संघर्ष विराम समझौते का पूरी तरह पालन करेंगे। इस ताज़ा घोषणा से सीमा पर शांति की उम्मीद जगी है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह सीज़फायर पहले की तरह कुछ समय बाद टूट जाएगा या इस बार टिकाऊ साबित होगा?
बीते कुछ वर्षों में भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। हर बार जब संघर्ष विराम की घोषणा होती है, कुछ महीनों के भीतर ही सीमा पार से गोलीबारी, ड्रोन घुसपैठ या आतंकी गतिविधियों की खबरें आ जाती हैं, जिससे समझौता कमजोर पड़ जाता है।
हालांकि इस बार परिस्थितियां कुछ अलग हैं। दोनों देशों के भीतर राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक चुनौतियों ने कूटनीतिक बातचीत की ज़रूरत को पहले से ज्यादा प्रासंगिक बना दिया है। पाकिस्तान की नई सरकार बातचीत को प्राथमिकता देने की बात कह रही है, वहीं भारत ने भी शांति की शर्त के रूप में ‘आतंक पर ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति को स्पष्ट किया है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार का सीज़फायर पिछले समझौतों से थोड़ा अलग है, क्योंकि इसमें निगरानी व्यवस्था को अधिक मज़बूत करने की बात कही गई है। दोनों सेनाओं के बीच हॉटलाइन और फ्लैग मीटिंग जैसी व्यवस्था को फिर से सक्रिय किया गया है, जिससे किसी भी छोटी घटना को तुरंत सुलझाया जा सके।
हालांकि, सुरक्षा एजेंसियां अब भी सतर्क हैं। सीमा पर तैनात जवानों को अलर्ट पर रखा गया है और किसी भी संभावित उल्लंघन की स्थिति में तुरंत कार्रवाई के निर्देश हैं।
इस सीज़फायर की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों देश अपने वादों पर कितने ईमानदार रहते हैं। फिलहाल उम्मीद की जा सकती है कि यह पहल सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक स्थायी शांति की दिशा में ठोस कदम साबित हो।
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