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विश्व की दो सबसे बड़ी महाशक्तियां अमेरिका और चीन अब सिर्फ व्यापार युद्ध में नहीं बल्कि तकनीकी और खनिज संसाधनों के मोर्चे पर भी आमने-सामने आ चुकी हैं। ये टैरिफ युद्ध अब अपने चरम पर है। जहां एक ओर अमेरिका ने चीनी सामानों पर आयात शुल्क 145 फीसदी तक बढ़ा दिया है, वहीं दूसरी ओर चीन ने भी पलटवार करते हुए अमेरिकी सामानों पर 125 फीसदी तक का टैक्स लगा दिया है।

मगर इस बार चीन ने केवल टैरिफ तक सीमित नहीं रहकर रणनीतिक चाल चल दी है। बीजिंग ने दो प्रमुख क्षेत्रों पर वार किया है कि हॉलीवुड और दुर्लभ खनिज (Rare Earth Minerals)।

हॉलीवुड पर सेंसर, डिफेंस इंडस्ट्री पर प्रहार

चीन ने अमेरिकी हॉलीवुड फिल्मों की रिलीज़ को सीमित करने का निर्णय लिया है, लेकिन इससे भी अधिक गंभीर कदम उन्होंने अमेरिकी रक्षा क्षेत्र को लक्ष्य बनाकर उठाया है। डिस्प्रोसियम, यिट्रियम, सैमरियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, ल्यूटेटियम और स्कैंडियम जैसे अहम खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर चीन ने सीधे-सीधे अमेरिका की डिफेंस इंडस्ट्री की जड़ों को झकझोर दिया है।

इन दुर्लभ खनिजों का इस्तेमाल जेट इंजन, फाइटर जेट्स, रडार सिस्टम, लेजर तकनीक और थर्मल कोटिंग्स में होता है। उदाहरण के लिए यिट्रियम हाई-टेम्परेचर इंजन कोटिंग्स और लेज़र सिस्टम में उपयोगी है, जबकि डिस्प्रोसियम चुंबकीय स्थिरता के लिए अनिवार्य होता है।

अमेरिका की डिफेंस डिपेंडेंसी उजागर

विशेषज्ञों की मानें तो अमेरिका की अगली पीढ़ी की रक्षा परियोजनाएं जैसे F-47, F-22 और NGAD (Next Generation Air Dominance)  काफी हद तक चीन से आने वाले इन खनिजों पर निर्भर हैं। बोइंग जैसी कंपनियाँ जो अमेरिका के लड़ाकू विमान निर्माण में अहम भूमिका निभाती हैं। अब सप्लाई चेन संकट के खतरे से जूझ रही हैं।

चीन का ये निर्णय एक तरह से टेक्नोलॉजिकल चोकपॉइंट है, जिसके जरिए वो अमेरिका को उसकी तकनीकी और सैन्य प्रगति की नींव पर ही चोट पहुँचा रहा है।
 

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