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Up Kiran, Digital Desk: अगर डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर वापसी करते हैं, तो उनकी "अमेरिका फर्स्ट" की व्यापार नीति वैश्विक बाजारों को हिला सकती है। उनके प्रस्तावित भारी आयात शुल्क, विशेषकर तांबे और फार्मास्युटिकल्स पर, भारत सहित कई देशों के लिए बड़े निहितार्थ रख सकते हैं।

तांबे पर 50% शुल्क: भारत के लिए चुनौतियाँ

ट्रम्प ने तांबे के आयात पर 50% का भारी शुल्क लगाने की बात कही है। उनका तर्क है कि इससे अमेरिका में तांबे का घरेलू उत्पादन बढ़ेगा, जिससे चीन पर निर्भरता कम होगी और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी।
भारत के लिए इसका क्या मतलब है? भारत तांबे का एक शुद्ध आयातक देश है, यानी वह जितना उत्पादन करता है, उससे अधिक आयात करता है। 

यदि अमेरिका तांबे पर इतना अधिक शुल्क लगाता है, तो वैश्विक तांबे की कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे भारत का आयात बिल बढ़ेगा, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और अन्य क्षेत्रों के लिए कच्चा माल महंगा हो जाएगा। हालांकि, यह भारत के घरेलू तांबा उत्पादकों के लिए अवसर भी पैदा कर सकता है, यदि वे अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा सकें।

दवाओं पर 200% शुल्क: भारत के लिए जटिल स्थिति

इससे भी अधिक चौंकाने वाला प्रस्ताव फार्मास्युटिकल्स पर 200% तक का टैरिफ है, जिसे विशेष रूप से चीन से आयात होने वाली दवाओं पर लक्षित किया गया है। ट्रम्प का मानना है कि दवाओं के लिए चीन पर निर्भरता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।
भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के फार्मास्युटिकल निर्यात के लिए सबसे बड़ा बाजार है। जबकि 200% शुल्क सीधे तौर पर चीन को निशाना बनाता है, इससे भारत के लिए भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकते हैं:

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