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प्रयागराज। यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में कानून महिलाओं की पक्ष लेता है,लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमेशा पुरुष ही गलत हो। यह बात इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कही। जिसमें महिला ने एक व्यक्ति पर शादी का झांसा देकर सालों तक रेप करने का आरोप लगाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि परिस्थितियों का आंकलन करना हमेशा बेहद महत्वपूर्ण होता है।

हाईकोर्ट के जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस नंद प्रभा शुक्ला की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सबूत पेश करने की जिम्मेदारी सिर्फ आरोपित का ही नहीं है,बल्कि शिकायतकर्ता का भी है। हाईकोर्ट ने रेप के आरोपित को बरी करने के सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणी की।

हाईकोर्ट ने कहा,'इसमें कोई शक नहीं है कि अध्याय—XVI के तहत यौन अपराधों में एक महिला-लड़की की गरिमा और सम्मान की रक्षा को प्रमुखता देते हुए कानून महिला केंद्रित है। ये जरूरी भी है,लेकिन परिस्थितियों का आंकलन भी जरूरी है। हर बार ये जरूरी नहीं कि पुरुष ही गलत हो।' इस मामले में महिला ने आरोपित के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में भी मामला दर्ज कराया था।

महिला ने 2019 में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपित ने उससे शादी का वादा करके शारीरिक सम्बंध बनाए,लेकिन बाद में वो अपने वादे से मुकर गया। यही नहीं,उसने पीड़ित महिला की जाति को लेकर भी अपमान जनक बातें कही। इस मामले में आरोपित के खिलाफ 2020 में चार्जशीट दाखिल की गई थी। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने आरोपित को रेप के आरोपों से बरी कर दिया था और सिर्फ आईपीसी की धारा 323 के तहत दोषी ठहराया था। इसके बाद महिला हाईकोर्ट पहुंची थी।

इस मामले में आरोपित व्यक्ति ने हाईकोर्ट से बताया कि महिला के साथ उसके संबंध सहमति से थे। महिला ने उससे खुद को 'यादव' जाति का बताया था, लेकिन उसकी जाति कुछ और थी, जिसके बाद उसने शादी से मना किया। कोर्ट ने रिकॉर्ड के आधार पर पाया कि महिला ने साल 2010 में शादी की थी, लेकिन 2 साल बाद ही वो अपने पति से अलग हो गई थी। हालांकि दोनों का तलाक नहीं हुआ था।

ऐसे में कोर्ट ने अहम टिप्पणी की और कहा,'परिस्थितियों के मुताबिक, इस बात की संभावना कम है कि आरोपित ने महिला को शादी के झूठे वादे में फंसाया हो। दूसरी बात ये है कि महिला पहले से ही विवाहित थी और उसका विवाह अब भी कानून की नजर में मौजूद है। ऐसे में शादी का वादा करने का आरोप अपने आप खत्म हो जाता है। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। यही नहीं, कोर्ट ने कहा था कि समाज में किसी भी रिश्ते को स्थायित्व देने में दोनों पक्षों के जाति की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जबकि ये साफ है कि महिला ने अपनी जाति छिपाई थी।

कोर्ट ने कहा, 'महिला पहले से शादीशुदा थी और पिछली शादी को खत्म किए बिना और बिना किसी आपत्ति के वो पांच साल तक आरोपित से संबंध बनाए रखती है। दोनों ने इलाहाबाद, लखनऊ के कई होटलों और लॉज में एक-दूसरे के साथ का आनंद लिया। ऐसे में ये तय करना मुश्किल है कि कौन किसे बेवकूफ बना रहा था। ऐसे में यौन उत्पीड़न या रेप का मामला सही नहीं लगता।' हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत का फैसला सही था। इसके साथ ही कोर्ट ने आरोपित के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

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