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Up Kiran, Digital Desk: रक्तदान एक महादान है, लेकिन जब हम आंकड़ों को देखते हैं, तो एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आती है—भारत में रक्तदान करने में महिलाएं पुरुषों से काफी पीछे हैं। आखिर ऐसा क्यों है? क्या महिलाएं रक्तदान करना नहीं चाहतीं, या कुछ ऐसी बाधाएं और गलतफहमियां हैं जो उन्हें रोक रही हैं? आइए, इन कारणों को समझते हैं।

1. पीरियड्स और प्रेगनेंसी से जुड़े मिथक
सबसे बड़ा मिथक पीरियड्स यानी मासिक धर्म से जुड़ा है। कई लोगों को लगता है कि महिलाएं पीरियड्स के दौरान खून नहीं दे सकतीं। सच तो यह है कि अगर महिला स्वस्थ महसूस कर रही है और उसका हीमोग्लोबिन का स्तर ठीक है, तो वह पीरियड्स के दौरान भी रक्तदान कर सकती है। डॉक्टर हमेशा दान से पहले जांच करते हैं।

हाँ, यह सच है कि गर्भावस्था (pregnancy) और स्तनपान (breastfeeding) के दौरान और उसके कुछ समय बाद तक महिलाएं रक्तदान नहीं कर सकतीं, लेकिन यह एक अस्थायी रोक है, स्थायी नहीं।

2. एनीमिया और कम हीमोग्लोबिन
यह एक मिथक नहीं, बल्कि एक वास्तविक और बड़ी समस्या है। भारत में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा पोषण की कमी के कारण एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी से जूझता है। रक्तदान के लिए एक निश्चित हीमोग्लोबिन स्तर का होना जरूरी है। इस कारण, कई महिलाएं चाहकर भी रक्तदान के लिए अयोग्य हो जाती हैं।

3. सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं
हमारा समाज आज भी कई पुरानी सोच से बंधा है।

4. डर और व्यक्तिगत चिंताएं
सुई का डर, चक्कर आने या कमजोरी महसूस होने का डर भी कई महिलाओं को रक्तदान केंद्रों से दूर रखता है। उन्हें यह चिंता भी होती है कि रक्तदान के बाद वे घर या ऑफिस का काम ठीक से नहीं कर पाएंगी।

क्या है समाधान?
इस खाई को पाटने के लिए दोतरफा प्रयास की ज़रूरत है। एक तरफ, हमें मिथकों को तोड़ने और सही जानकारी फैलाने के लिए जागरूकता अभियान चलाने होंगे। वहीं दूसरी तरफ, महिलाओं के स्वास्थ्य, खासकर उनके पोषण और हीमोग्लोबिन के स्तर को सुधारने पर काम करना होगा।

जब एक महिला रक्तदान करती है, तो वह सिर्फ खून ही नहीं, बल्कि समाज की पिछड़ी सोच को तोड़कर आगे बढ़ने की प्रेरणा भी दान करती है।

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