
Dalits allowed to worship: पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्धमान जिले के गिधग्राम गांव में स्थित गिद्धेश्वर शिव मंदिर आज सुबह एक अनोखे नजारा देखने को मिला। मंदिर के आंगन में आशा और मालती दो महिलाएं पूजा की थाली लिए बैठी थीं। उनके चेहरे पर उम्मीद और दृढ़ संकल्प साफ झलक रहा था। लेकिन मंदिर का पट बंद था और गांव में एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी।
सवेरे लगभग दस बजे पुजारी उत्तम मलिक ने मंदिर का पट खोला और उनकी पूजा की थाली स्वीकार की। ये पल सामान्य नहीं था- यह एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत था। दलित समुदाय के लोगों ने पहली बार इस मंदिर में पूजा शुरू की है, लेकिन इसके जवाब में गांव के कई लोगों ने मंदिर जाना छोड़ दिया है। पिछले 300 सालों से पहली बार किसी दलित ने इस मंदिर में पूजा के लिए कदम रखा।
गिधग्राम का ये प्राचीन मंदिर लंबे समय से गांव की आस्था का केंद्र रहा है। दलित समुदाय के लोगों का कहना है कि उन्हें हमेशा से मंदिर में प्रवेश और पूजा करने से रोका जाता रहा। लेकिन अब संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार को हथियार बनाकर वे अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। आशा ने बताया कि हमारे पुरखों को कभी ये मौका नहीं मिला। आज हमने ठान लिया कि अब और नहीं। ये हमारा मंदिर भी है। मालती ने आगे कहा कि हमें कोई रोक नहीं सकता। भगवान सबके हैं।
लेकिन ये बदलाव गांव में सभी को स्वीकार्य नहीं है। मंदिर के बाहर कुछ ग्रामीणों की भीड़ जमा थी, जिनमें से कई ने विरोध जताया। एक स्थानीय निवासी, जो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि ये परंपरा का अपमान है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम मंदिर नहीं जाएंगे। सूत्रों के अनुसार, कुछ लोगों ने मंदिर समिति से भी इस बदलाव को रोकने की मांग की है।