
Up Kiran, Digital Desk: आपने कभी सोचा है कि नवरात्रि के व्रत वाले खाने में या मंदिर के भंडारे में मिलने वाले स्वादिष्ट प्रसाद में कभी भी प्याज और लहसुन क्यों नहीं डाला जाता? यह कोई मामूली परंपरा नहीं है। इसके पीछे भारत की हजारों साल पुरानी समझ और गहरा विज्ञान छिपा , जो बताता है कि हम जो खाते हैं, वह सिर्फ हमारे शरीर को नहीं, बल्कि हमारे मन और आत्मा को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
भोजन सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं होता
भारतीय परंपरा और हिंदू दर्शन के अनुसार, भोजन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है - सात्विक, राजसिक और तामसिक। ये सिर्फ खाने के प्रकार नहीं, बल्कि हमारे मन पर पड़ने वाले उनके प्रभाव हैं।
सात्विक भोजन: यह सबसे शुद्ध भोजन माना जाता जैसे फल, दूध, दही, सब्जियां और अनाज। यह मन को शांत, स्थिर और एकाग्र रखता है। पूजा-पाठ या ध्यान के लिए ऐसी ही मानसिक स्थिति की जरूरत होती है।
राजसिक भोजन: यह भोजन उत्तेजना पैदा करता जैसे बहुत मसालेदार, तला हुआ या कड़वा खाना। यह मन में बेचैनी, इच्छाओं और जुनून को बढ़ाता है।
तामसिक भोजन: यह सबसे निचली श्रेणी का भोजन है, जैसे बासी खाना, मांस, शराब और... प्याज और लहसुन। यह शरीर में भारीपन, आलस, गुस्सा और नकारात्मक विचार पैदा करता है।
तो फिर प्याज और लहसुन 'No Entry' लिस्ट में क्यों हैं?
प्याज और लहसुन, भले ही जमीन में उगने वाली सब्जियां हैं, लेकिन उन्हें तामसिक या कभी-कभी राजसिक श्रेणी में रखा जाता । इसके पीछे कई गहरे कारण हैं:
आयुर्वेद क्या कहता है?: आयुर्वेद के अनुसार, प्याज और लहसुन की तासीर बहुत गर्म और तेज होती है। यह शरीर में गर्मी बढ़ाते हैं और हमारी इंद्रियों को उत्तेजित करते हैं। इससे मन में हलचल और भावनात्मक उतार-चढ़ाव पैदा होता है, जो ध्यान और पूजा के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है।
ऊर्जा का प्रवाह: माना जाता है कि इन चीजों को खाने से शरीर की ऊर्जा नीचे की ओर बहने लगती है। यह मन में गुस्सा, वासना और बेचैनी जैसी भावनाओं को जन्म देती है, जिससे आध्यात्मिक ध्यान पूरी तरह से भटक जाता है।
पौराणिक मान्यताएं: कुछ पौराणिक कथाएं भी प्याज और लहसुन की उत्पत्ति को नकारात्मक या अशुद्ध ऊर्जाओं से जोड़ती हैं। इन कहानियों ने भी हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को प्रभावित किया है, और इसी वजह से शुद्धता बनाए रखने के लिए इन्हें धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता है।
व्रत का असली मकसद समझिए
व्रत रखना सिर्फ भूखे रहने का नाम नहीं है, यह अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करने और मन को शुद्ध करने का एक आध्यात्मिक अभ्यास है। जब हम व्रत में सात्विक भोजन (जैसे फल, दूध, कुट्टू का आटा) खाते हैं, तो हमारा शरीर हल्का रहता है और मन शांत होता है। ऐसे में हमारा पूरा ध्यान पूजा, प्रार्थना और ध्यान में लगता है, न कि शारीरिक इच्छाओं या मानसिक भटकाव में।
इसलिए, अगली बार जब आप बिना प्याज-लहसुन वाला प्रसाद खाएं, तो याद रखिएगा कि यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आपके मन को शांत और स्थिर रखने का एक वैज्ञानिक तरीका है, ताकि आप ईश्वर से बेहतर तरीके से जुड़ सकें।
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