
Up Kiran, Digital Desk: दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हर इंडस्ट्री पर कब्ज़ा कर रहा है और इसका सबसे बड़ा असर नौकरियों पर पड़ रहा है. एक समय था जब अमेरिका की Ivy League या ब्रिटेन की Oxbridge जैसी टॉप यूनिवर्सिटी की डिग्री को सफलता की गारंटी माना जाता था. भारतीय माँ-बाप अपने बच्चों को लाखों रुपये ख़र्च करके वहाँ भेजते थे, लेकिन अब यह पुराना फॉर्मूला काम नहीं कर रहा है.
एक Ivy League स्टूडेंट की कहानी जो आपकी आँखें खोल देगी
इस साल की शुरुआत में, लॉस एंजेलिस में मेरी मुलाक़ात हैदराबाद की रहने वाली आर्या नायर से हुई. आर्या अमेरिका की एक टॉप Ivy League यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रही है. लेकिन उसके चेहरे पर ख़ुशी से ज़्यादा चिंता थी.
उसने धीरे से कहा, "मुझे लगा था कि Ivy League की डिग्री ही काफ़ी होगी. लेकिन अब मुझे नौकरी खोजने में न तो हिम्मत आ रही है और न ही आत्मविश्वास. मैंने रिसर्च पेपर पर काम किया है, लेकिन मुझे यह नहीं पता कि इसका क्या करना है. और न ही अमेरिका या यूरोप में मेरे ऐसे कोई कॉन्टैक्ट्स हैं जो मेरे लिए दरवाज़े खोल सकें."
क्यों बड़ी डिग्रियाँ भी अब नाकाफ़ी हैं:वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 'फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट 2025' चेतावनी देती है कि 40% कंपनियाँ ऑटोमेशन के कारण कर्मचारियों की छंटनी करने की योजना बना रही हैं. मैकिन्से का अनुमान है कि 2030 तक अमेरिका में 30% तक नौकरियां ख़त्म हो जाएंगी. फाइनेंस, टेक और इंजीनियरिंग जैसी सुरक्षित मानी जाने वाली एंट्री-लेवल नौकरियाँ या तो गायब हो रही हैं या इतनी तेज़ी से बदल रही हैं कि ज़्यादातर लोग उनके साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं.
यहाँ तक कि हार्वर्ड के MBA Class of 2024 के 23% छात्र ग्रेजुएशन के तीन महीने बाद भी बेरोज़गार थे.
उन भारतीय परिवारों के लिए यह एक कड़वा सच है जो लाखों रुपये ख़र्च करके अपने बच्चों को विदेश भेजते हैं. अब सिर्फ़ एक महँगी डिग्री आपके बच्चे के भविष्य को सुरक्षित नहीं रख सकती.
तो फिर रास्ता क्या है:अगर Ivy League की डिग्री भी बच्चों को नहीं बचा सकती, तो क्या बचाएगा? इसका जवाब उन चीज़ों में छिपा है जिन्हें कंपनियाँ अब सबसे ज़्यादा महत्व दे रही हैं:
काम का असली सबूत (Proof of Ability): सिर्फ़ डिग्री नहीं, बल्कि असली प्रोजेक्ट दिखाइए जिनका कोई नतीजा निकला हो.
जुनून से किए गए प्रोजेक्ट (Passion-driven Projects): साधारण इंटर्नशिप नहीं, बल्कि ऐसे काम जो दिखाते हों कि आप किसी चीज़ को लेकर जुनूनी हैं.
ताकतवर सिफ़ारिशें (Powerful Endorsements): सिर्फ़ प्रोफेसर की नहीं, बल्कि बड़ी कंपनियों के डायरेक्टर, CXO और ग्लोबल लीडर्स की सिफ़ारिश.
आज की AI वाली दुनिया में, यह मायने नहीं रखता कि आप क्या जानते हैं, बल्कि यह मायने रखता है कि कौन आपके काम की गारंटी लेने को तैयार है.
इसका समाधान ऐसे ग्लोबल प्रोग्राम्स में छिपा है जो टीनएजर्स और यूनिवर्सिटी के छात्रों को इंडस्ट्री के बड़े लीडर्स के साथ काम करने का मौका देते हैं. इससे उन्हें न सिर्फ़ काम का सबूत मिलता है, बल्कि एक ऐसा नेटवर्क भी मिलता है जिसका वज़न डिग्री से कहीं ज़्यादा होता है.