
राजस्थान में जो संत भाजपा के टिकट पर जीतकर आए थे, जिसमें पोकरण से जीतकर आए महंत प्रतापपुरी जो पहली बार विधानसभा पहुंचे। वहीं अलवर की तिजारा सीट से जीतकर आए जो पहले सांसद रहे बाबा बालकनाथ जो विपरीत जातिगत समीकरण में भी जीतकर आए। वहीं एक सीट जयपुर की हवामहल सीट, जहां से जीतकर आए बाबा बाल मुकुंद आचार्य और एक संत का नाम इस सूची में और शामिल है जो वसुंधरा खेमे के माने जाते हैं। जो पहले मंत्री पद राजस्थान में वसुंधरा सरकार में संभाल चुके हैं और जिन्हें वसुंधरा राजे का करीबी बताया जाता है। ओटाराम देवासी, इन कुल चार संतों में तीन संतों को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।
वहीं ओटाराम देवासी ने आज राज्यमंत्री की शपथ ली है। उन्हें भी कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है। तीन संत बाबा बालकनाथ, बालमुकुंद आचार्य और महंत प्रतापपुरी को बाहर करने का क्या फायदा या नुकसान भाजपा को मिलेगा, यह देखना होगा। भाजपा ने सबसे पहले अगर बात करें तो तीनों नेताओं में महंत प्रतापपुरी जिन्होंने अशोक गहलोत सरकार में मंत्री सालेह मोहम्मद को विपरीत जातिगत समीकरण वाली सीट पर पोकरण पर बढे़ वोटों के मार्जिन से 35,000 वोटों से मात दी।
बता दें कि बाबा बालकनाथ जो तिजारा सीट से चुनाव लडे़ वहां पर भी विपरीत जातिगत समीकरण के बावजूद जीत कर आए। तीसरी विधानसभा सीट हवा महल विधानसभा सीट जहां से बालमुकुंद आचार्य जीते। जो भी विपरीत जातिगत समीकरण वाली सीट मानी जाती है। ऐसे में तीनों नेताओं को मंत्री परिषद में जगह नहीं दी गई है। न ही उनमें से कोई कैबिनेट मंत्री बना है। न ही राज्यमंत्री बनाकर स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। न ही उन्होंने राज्यमंत्री की शपथ ली है। लेकिन वसुंधरा राजे के करीबी संत ओटाराम देवासी को इस मंत्री परिषद में जगह दी गई है। तीनों संतों की अनदेखी किस तरीके से भाजपा के लिए आगे कारगर साबित होगी, यह देखना होगा।