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लखनऊ।। यूपीएसआईडीसी (UPSIDC) फैले भ्रष्टाचार को लेकर अक्सर सुर्ख़ियों में रहता है। आज हम बताने जा रहे हैं किस तरह यूपीएसआईडीसी में बिना विज्ञापन के नियम-कानून को ताक पर रखकर नियुक्तियां की गयी और कैसे एक साथ दो-दो डिग्री कोर्स करने वाले को बिना विज्ञापन नियुक्त किया गया। यही नहीं बार-बार उच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन कहाँ किया गया और उसका पालन कहाँ किया गया।इसका खुलासा आज हम करने जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक बिना विज्ञापन भर्तियों की यूपीएसआईडीसी में शुरुआत सर्वप्रथम तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक राजीव कुमार द्वारा की गई। उन्होंने मयंक श्रीवास्ताव की बिना विज्ञापन नियुक्ति करके इस परम्परा की शुरुआत की। मयंक वर्तमान में क्षेत्रीय प्रबंधक लखनऊ के पद पर कार्यरत हैं।upsidc- upsida

 

इनकी नियुक्ति मैनेजमेंट ट्रेनी के रुप में 1989 में 5500 रुपए प्रतिमाह पर की गई। जबकि महामुहिम राज्यपाल के द्वारा यूपीएसआईडीसी (UPSIDC) के स्वीकृत स्टाफ स्टैण्ड में मैनेजमेनट ट्रेनी का कोई भी पद सृजित ही नहीं है। इतना ही नहीं इस नियमविरुद्ध की गयी नियुक्ति को शासन के दबाव में उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम के सर्विस रूल का उल्लंघन करते हुये इन्हें निदेशक मंडल की बैठक में उप प्रबन्ध के पद पर नियुक्ती दी गयी।

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जबकि सर्विस रूल के अनुसार लागू सेवा नियमावली के अनुसार, उप प्रबन्ध सामान्य का पद 50 प्रतिशत सीधी भर्ती से और 50 प्रतीशत प्रमोशन से भरे जाने वाला पद है। यहाँ यह गौरतलब है कि इस पद पर मृतक आश्रित के रूप में किसी प्रकार की नियुक्ति नहीं की जा सकती। इसके उपरान्त भी निदेशक मंडल की बैठक में इस प्रस्ताव को पास करवाकर मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति कर दी गई।

नियुक्ति के बाद मयंक श्रीवास्तव ने क्षेत्रिय प्रबन्धक गाजियाबाद में डिप्टी मैनेजर पद पर कार्य करते हुये उन भू-खंडों का आवंटन कर दिया जो भूखंड आज भी UPSIDC के कब्जे में नहीं है। जिसकी जांच आज भी निरंतर चल ही रही है। इस प्रकरण में इन्हें तत्कालीन यूपीएसडीसी प्रबन्ध निदेशक द्वारा निलंबित किया गया।

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सूत्रों की मानें तो निलंबन के साथ-साथ 76 भूखंडों के फर्जी आवंटन के लिए मयंक श्रीवास्तव पर FIR करने के आदेश भी दिए गए।बाद में पुनः इन्हें बहाल कर दिया गया। बहाली के बाद मयंक श्रीवास्तव की फिर से महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती दी जाने लगी और पूर्व की भांति निगम में भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान बनाने में जुट गए। मयंक के विरुद्ध फाइलों में जाँच चलती रही, कोई कार्रवाई तो नहीं हुई उलटे मयंक को निदेशक मंडल की बैठक के द्वारा डिप्टी मैनेजर का अवार्ड जरूर दे दिया गया गया।

मयंक श्रीवास्तव की यूपीएसआईडीसी (UPSIDC) में नियुक्ति को लेकर एक झोल है। मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति मृतक आश्रित में बताई जाती है जबकि मयंक श्रीवास्तव के पिता कभी यूपीएसआईडीसी में रहे ही नहीं। उनकी मृत्यु जब हुई तब उनकी तैनाती बतौर विशेष सचिव गृह शासन में थी। यहीं नहीं वो कभी औद्योगिक विकास विभाग में नहीं रहे।

मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति को लेकर जो जानकारी सामने आयी है वो भी बेहद चौंकाने वाली है। निगम सूत्रों की मानें तो मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति शासन के एक तथाकथित आदेश के क्रम में हुई थी जिसकी पुष्टि शासन ने कभी भी नहीं की और न ही इसका कोई अभिलेख शासन में उपलब्ध है। यहीं नहीं मयंक की नियुक्ति के बाद उसे सीधे डिप्टी मैनेजर के पद पर कर दी गयी जबकि डिप्टी मैनेजर के पद पर सीधे नियुक्ति का कोई प्राविधान ही नहीं है।

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इसी परम्परा के चलते यूपीएसआईडीसी (UPSIDC) में मैनेजमेनट ट्रेनी के रूप में वीके सिंह की नियुक्ति कर दी गयी, जो वर्तमान में क्षेत्रीय प्रबन्ध इलाहाबाद में कार्ययत है। वीके सिंह को भी पहले मैनेजमेनट ट्रेनी के रूप में बिना विज्ञापन के भर्ती कर लिया गया और बाद में उन्हें भी उप-प्रबन्ध के पद पर नियमित कर दिया गया। बीके सिंह नियुक्ति के समय से ही इलाहाबाद में ही तैनात हैं। समय-समय पर शासन द्वारा जारी स्थानांतरण का प्रभाव इन पर नहीं पड़ा। इनके भी कार्यकाल की जाँच की जाये तो निगम में फैले भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा हो सकता है।

इसी प्रकार संजू उपाध्याय जो कि वर्तमान में क्षेत्रीय प्रबंधक गाजियबाद में उप-प्रबन्धक सामान्य के पद पर कार्ययत हैं। संजू उपाध्याय को भी बिना विज्ञापन पहले मैनेजमेनट ट्रेनी के रूप में यूपीएसआईडीसी (UPSIDC) में भर्ती किया गया फिर इसके बाद इन्हें उप-प्रबन्धक सामान्य के पद पर नियमित कर दिया गया।संजू उपाध्याय के ऊपर भी भ्रष्टाचार के कई गंभीर मामले हैं।

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ठीक इसी प्रकार श्याम सिंह जो कि UPSIDC में कंसॉलिडेटेड बाबू के पद पर कार्यरत थे। नियम विरुद्ध तरीके से स्वेच्छाचारिता अपनाते हुए इन्हें मैनेजमेट ट्रेनी के रूप में 35 हजार रूपए प्रतिमाह पर नियुक्ति दे दी गयी। श्याम सिंह के ऊपर भी भ्रष्टाचार के कई मामले जाँच के दायरे में हैं। लेकिन सबसे चौंकाने वाला मामला इनकी नियुक्ति से जुड़ा है।

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श्याम सिंह के बारे में बताया जाता है की निगम में इनके शैक्षणिक रिकार्ड में दो कोर्स यानि बीए और बीकॉम एक साथ करने का मामला है। एक साथ दो-दो कोर्स मामले में हुई जाँच को श्याम सिंह ने अपने दमखम के चलते दबवा दिया।

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ठीक इस प्रकार से आर.के. गुप्ता तत्कालीन महाप्रबंधक विधि (UPSIDC) की पुत्री मंजरी गुप्ता को भी बिना विज्ञापन के मैनेजमेट ट्रेनी विधि के पद नियुक्त कर दिया गया। मैनेजमेंट ट्रेनी के पद पर रहते हुए मंजरी गुप्ता ने निगम के लेटर हेड का इस्तेमाल नियम किया। इतना ही नहीं उन्होंने न्यायालय में निगम की तरफ से जवाब देने के लिए खुद को अधिकृत करने लिए निगम को पत्र भी लिखा। इस तरह से ये 5 नियुक्तियां बिना विज्ञापन के हुई।

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आपको यह भी बता दें कि यूपीएसआईडीसी (UPSIDC) द्वारा उच्च न्यायलय आदेश के क्रम में बिना विज्ञापन के निगम में नियुक्त श्रीमती कनक मिश्रा को इस निगम की सेवा से बर्खास्त किया जा चुका है।यहाँ यह भी गौरतलब है कि कनक मिश्रा की बर्खास्तगी काफी पहले हुई। उसके बाद उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए बिना विज्ञापन नियुक्तियां भी की गयीं और उन्हें नियम-कानून को ताक पर रखते हुए नियमित भी कर दिया गया।

फोटोः फेसबुक

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