25 अगस्त यानी दुर्लभ गुरु-पुष्य नक्षत्र योग का निर्माण होने जा रहा है। ज्योतिषशास्त्र (Astrology) में गुरु-पुष्य योग का विशेष महत्व बताया गया है। साल में गुरु-पुष्य नक्षत्र का संयोग दो से तीन दिन ही बनता है। इस ख़ास संयोग में शुभ खरीदारी और शुभ कार्यों की शुरुआत करना उतना ही शुभ फलदायी माना जाता है जितना कि दीपावली में करना माना जाता है। कहते हैं इस समय शुभ कार्य करने से और शुभ खरीदारी से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ज्योतिषी बता रहे हैं कि 25 अगस्त दिन गुरुवार 10 महायोग के साथ गुरु-पुष्य नक्षत्र का संयोग 1500 वर्षों बाद एक बार फिर से बन रहा है। (Astrology)
पुष्य नक्षत्र संयोग शाम 4 बजकर 50 मिनट तक रहेगा
ज्योतिष गणना (Astrology) के अनुसार 25 अगस्त को सूर्योदय के साथ ही सभी 27 नक्षत्रों में सबसे उत्तम और शुभ फल देने वाला पुष्य नक्षत्र आरंभ हो जाएगा। यह पुष्य नक्षत्र संयोग शाम 4 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। ज्योतिषी बता रहे हैं कि 25 अगस्त को पूरे दिन शुभ गुरु पुष्य नक्षत्र होने से इस महामुहूर्त में सभी तरह के शुभ कार्य करना शुभफलदायी साबित होगा। ज्योतिषाचार्यों की माने तो जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ता है तो ये गुरु-पुष्य नक्षत्र का संयोग बनता है।
इस शुभ संयोग पर मकान खरीदना, फ्लैट खरीद ना, जमीन में निवेश करना, नए कार्यों का शुरुआत करना, गृह प्रवेश करना, ज्वैलरी, वाहन और अन्य दूसरी लग्जरी चीजों की खरीदारी करना बेहद शुभ फाल्यै होता है। वैसे तो गुरु-पुष्य नक्षत्र का संयोग साल भर में दो या तीन बार ही बनता है, लेकिन इस बार गुरु-पुष्य नक्षत्र के योग के साथ ग्रहों का ऐसा संयोग बना रहा है जो पिछले लगभग 1500 वर्षों से नहीं बना था। (Astrology)
ज्योतिषीय गणना (Astrology) के अनुसार 25 अगस्त को गुरु-पुष्य नक्षत्र के संयोग के दिन सूर्य सिंह राशि, गुरु मीन राशि में, शनि मकर राशि में, बुध कन्या राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में गोचर करेंगे ये सभी 5 ग्रह इस दिन स्वंय की राशि में विराजमान रहेंगे जोकि बहुत ही शुभ संयोग है। इस दिन शनि और गुरु दोनों ग्रह खास तरह का योग भी बना रहे हैं क्योंकि दोनों ग्रह स्वराशि में होने के साथ शनि ग्रह पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं और पुष्य नक्षत्र के देवता गुरु ग्रह हैं। शुभ ग्रहों का ऐसा संयोग कई सदियों के बाद बन रहा है।
पुष्य नक्षत्र का महत्व
ज्योतिषी (Astrology) बताते हैं कि बृहस्पति देव भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे। तैत्रीय ब्राह्मण नाम के ग्रंथ में में कहा गया है कि, बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण में लिखा गया है कि इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। धार्मिक शास्त्रों की मानें तो आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभ फलदायी कहे गये हैं किन्तु मां पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणामस्वरुप पाणिग्रहण संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है।
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