basant panchami 2021: बसंत ऋतु को ऋतुराज और मधुमास भी जाता रहा है। इस ऋतु में कुहरा खत्म हो जाता है। ठंड विदा हो जाती है। आसमान निर्मल और स्वच्छ हो जाता है। नदी, सरोवर, तालाब का जल अपनी छवि से मन को आकर्षित करते हैं।पेड़ों में नई-नई कोपलें फूटती है। महुए की गंध से वन महक जाते हैं।
सरसों, जौ, आलू, गेहूँ, चना, मटर, तीसी की फ़सल तैयार होने को होती हैं। कोयल और पपीहा अमराइयों से मस्त मधुर गान करते हैं। मधुऋतु के इस सुरम्य प्राकृतिक सुषमा और संपन्न वातावरण को कवियों ने अपनी लेखनी के माध्यम से उसके विविध रूपों में स्थापित करने का प्रयास किया है। आदि कवि वाल्मीकि हों, महाकवि कालिदास हों या फिर महाकवि निराला, सभी ने मदमस्त होकर बसंत के गीत गाये हैं। (basant panchami 2021)
नव बृंदवन नव-नव तरुगण,
नव-नव विकसित फूल।
नवल वसंत नवल मलयानिल,
मातल नव अलिकूल॥
बिहराई नवल किशोर। (basant panchami 2021)
चैत वसंता होइ धमारी। मांहि लेखे संसार उजारी॥
पंचम विरह पंच सर मारे। रकत रोइ सगरौं बन ढारै॥
बौरे आम फरै अब लागैं। अबहूँ आउ घर, कंत सभागे॥
सहस भाव फूली वनस्पति। मधुकर घूमहूँ संवरि मालती॥
मो कहं फूल भये सब कांटे। दिष्टि परस जस लागहि चांटे॥
फिर जोबन भए नारंग साखा। सुआ विरह अब जाइ न राखा॥ (basant panchami 2021)
तेहि आस्रमहिं मदन जब गयऊ। निज माया वसंत निरमऊ।
कुसुमित विविध विटप बहुरंगा। कुजहिं कोकिल गुंजहिं भ्रंगा॥
इसी तरह रीतिकाल के प्रमुख घनानंद ने बसंत का वर्णन करते हुए लिखा है –
घुमड़ि पराग लता तस भोये, मधुरित सौरभ सौज संभोये।
बन वसंत बरनत मन फूल्यौ। लता-लता झूलनि संग झल्यौ। (basant panchami 2021)
कूलन में कोलि में कछारन में कुंजन में
क्यारिन में कलित कलीन किलकंत है
कहैं पद्माकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पंगत है।
युवती धरा यह था वसंत-काल,
हरे भरे स्तनों पर पड़ी कलियों की माल,
सौरभ से दिक्कुमारियों का मन सींच कर
बहता है पवन प्रसन्न तन खींच कर।
पृथ्वी स्वर्ग से ज्यों कर रही होड़ निष्काम (basant panchami 2021)
काली कोकिल, सुलगा उर में स्वरमायी वेदना का अंगार,
आया वसंत घोषित दिगन्त कहती, भर पावक की पुकार।
अभी अभी ही तो आया है
मेरे जीवन में मृदुल वसंत
अभी न होगा मेरा अंत। (basant panchami 2021)
हवा हूँ हवा, मैं वसंती हवा हूं।
वहीं हां, वही जो युगों से गगन को
बिना कष्ट श्रम के सम्हाले हुए हूं
हवा हूँ, हवा, मैं वसंती हवा हूं।
वहीं हाँ, वही जो धरा का वसंती,
सुसंगीत मीठा गुँजाती फिरी हूं
हवा हूँ, हवा, मैं वसंती हवा हूँ।
इस प्रकार प्रकृति में होने वाले श्रृंगारिक परिवर्तनों ने कवियों को ऋतुराज के प्रति आकर्षित किया है। हर भाषा के कवि ने बसंत की छटा का अपनी तरह से वर्णन किया है। आज के कवि भी मदमस्त होकर बसंत के गीत गा रहे हैं। (basant panchami 2021)