नई दिल्ली॥ महाराष्ट्र, झारखंड के बाद दिल्ली विधानसभा इलेक्शन में मिली हार से भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। भारतीय जनता पार्टी के सामने अब इस साल बिहार और अगले साल वेस्ट बंगाल में विधानसभा इलेक्शन जीतने की चुनौती है। दिल्ली में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी बिहार में जद(यू) से मोलभाव करने की स्थिति में नहीं है। वहीं वेस्ट बंगाल बंगाल में पार्टी को स्थानीय स्तर पर कद्दावर नेता की कमी खटकने लगी है। इस नतीजे के बाद भाजपा के सहयोगी अब पार्टी पर दबाव बनाने से नहीं चूकेंगे।
बिहार में संभवत: इसी वर्ष अक्टूबर में, तो वेस्ट बंगाल बंगाल में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा इलेक्शन होने हैं। बिहार में पार्टी की योजना सहयोगी जद(यू) के बराबर सीट हासिल करने की है। लेकिन ताजा नतीजे ने पार्टी को उलझा दिया है। एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “राज्य में पार्टी के पास दिग्गज नेता न होने के साथ ही विधानसभा इलेक्शन में निरंतर हार के बाद भारतीय जनता पार्टी दबाव में होगी और जद(यू) से बहुत अधिक मोलभाव करने की स्थिति में नहीं होगी। वैसे भी जद(यू) इस चुनाव से पहले ही भारतीय जनता पार्टी की तुलना में अधिक सीटें मांग रही है।”
दिल्ली इलेक्शन हारने के बाद से भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रवादी एजेंडे से कई सहयोगी असहज हो सकते हैं। ध्यान रहे कि दिल्ली में जद(यू) अध्यक्ष नीतीश कुमार के साथ साझा रैलियों में भारतीय जनता पार्टी ने विवादित मुद्दों को उठाने से परहेज किया। लेकिन भारतीय जनता पार्टी नेता शाहनवाज हुसैन का मानना है, “दिल्ली इलेक्शन का बिहार पर कोई असर नही पड़ेगा। जद(यू) के साथ भाजपा के संबंध मधुर हैं। बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार हैं। हम बिहार भी जीतेंगे और वेस्ट बंगाल भी। सीट बंटबारे को लेकर जद(यू) के साथ कोई दिक्कत नहीं होगी।”
आपको बता दें कि एनआरसी, एनपीआर पर जद(यू), अकाली दल ने आपत्ति जताई है। अकाली दल ने सीएए पर भी आपत्ति जताई है। अब दिल्ली के नतीजों के बाद दलों का दबाव भारतीय जनता पार्टी पर बढ़ेगा। वैसे भी झारखंड व महाराष्ट्र के नतीजे के बाद सहयोगियों ने खुल कर राजग की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे।