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Up Kiran, Digital Desk: राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र रही मनुस्मृति एक बार फिर से सुर्खियों में है। इस बार इसका संदर्भ केंद्र सरकार की द्वारा तैयार की गई "लेबर पॉलिसी 2025" के ड्राफ्ट में दिया गया है। इस ड्राफ्ट में मनुस्मृति का उल्लेख इस संदर्भ में किया गया है कि पुराने ग्रंथों में श्रमिकों के अधिकारों और मजदूरी निर्धारण के बारे में कैसे विचार किया गया था।

हालांकि, मनुस्मृति को लेकर सदियों से विवाद रहा है, फिर भी इस ड्राफ्ट में इस ग्रंथ का जिक्र करने से एक नई बहस शुरू हो सकती है। इस ड्राफ्ट में श्रमिकों के अधिकारों के बारे में गहरे विचार किए गए हैं और बताया गया है कि किस प्रकार भारतीय संस्कृति और दर्शन में श्रम को एक पवित्र कर्तव्य माना गया है, न कि सिर्फ आजीविका के साधन के रूप में।

श्रम का आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण

लेबर पॉलिसी के ड्राफ्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत में श्रम की परिभाषा केवल आर्थिक दृष्टिकोण से सीमित नहीं है, बल्कि यह एक धार्मिक और सामाजिक कर्तव्य भी है। यह दृष्टिकोण यह बताता है कि श्रम समाज के कल्याण और सामूहिक समृद्धि का हिस्सा है। भारतीय परंपरा में काम करना केवल एक साधन नहीं, बल्कि यह एक ऐसा कार्य है जो धर्म के व्यापक ढांचे में योगदान करता है।

इस नीति के अनुसार, हर श्रमिक, चाहे वह किसान हो, कारीगर हो या औद्योगिक श्रमिक, सभी को एक अनिवार्य और मूल्यवान भूमिका दी जाती है। इसका उद्देश्य यह है कि हर व्यक्ति अपने कार्य के माध्यम से समाज को सशक्त बनाता है और समृद्धि में योगदान करता है।

प्राचीन ग्रंथों में श्रम और न्याय

ड्राफ्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि विभिन्न प्राचीन ग्रंथों ने श्रम को लेकर एक स्पष्ट विचारधारा दी थी। इनमें मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, नारदस्मृति, शुक्रनीति और अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथों का जिक्र किया गया है, जिन्होंने श्रमिकों के कर्तव्यों, न्याय और उचित मजदूरी के बारे में गहरी समझ दी थी।

इन ग्रंथों में यह बताया गया था कि श्रमिकों को उनके समय पर वेतन मिलना उनके अधिकारों में शामिल है और इसे न्याय माना गया है। अगर किसी श्रमिक को समय पर वेतन नहीं दिया जाता है, तो यह अन्याय की श्रेणी में आता था। इस दृष्टिकोण से यह साफ होता है कि श्रम की सटीक परिभाषा और श्रमिकों के हितों की रक्षा पर जोर पहले से ही भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही है।

मनुस्मृति के संदर्भ में विवाद की संभावना

हालांकि, मनुस्मृति का संदर्भ इस ड्राफ्ट में किसी भी प्रकार के विवाद को जन्म दे सकता है, क्योंकि इस ग्रंथ को लेकर कई बार आलोचनाएँ और बहसें हुई हैं। फिर भी, यह कदम इस बात का प्रतीक है कि सरकार ने इस नीति में भारतीय दर्शन और प्राचीन विचारधाराओं का सम्मान किया है, और यह उन पर आधारित श्रमिकों के अधिकारों को सशक्त करने की कोशिश कर रही है।