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वह बारहवीं कक्षा का वर्ष, जो सचमुच जीवन की दिशा तय करता है। इसी निर्णायक मोड़ पर कृष्णा बब्रुवन पाटिल ने दिन-रात एक कर, अथक परिश्रम करने का संकल्प लिया था। यह संकल्प आसान नहीं था, राह में कई मुश्किलें आईं, लेकिन कृष्णा न तो हारे और न ही थके। उनके इस दृढ़ संकल्प के पीछे एक मजबूत स्तंभ था – उनकी माँ।
मां ने बढ़ाया हौसला
पिता किसान थे और जब उनका सहारा छिन गया, तो माँ ने खेती की जिम्मेदारी संभाली। विपरीत परिस्थितियों में भी माँ ने कृष्णा का हौसला बनाए रखा और उन्हें उनके सपनों की याद दिलाती रहीं। इसी अटूट समर्थन और प्रेरणा का परिणाम है कि आज कृष्णा बब्रुवन पाटिल ने यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) की प्रतिष्ठित परीक्षा में देश भर में 197वीं रैंक हासिल कर अपनी सफलता का परचम लहराया है। उनकी यह संघर्ष गाथा निश्चित रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक मार्गदर्शक है।
पिछले दो वर्षों से पुणे के कटराज इलाके में रहकर कृष्णा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। इससे पहले उन्होंने एक वर्ष दिल्ली में भी बिताया। हालांकि, कृष्णा का मानना है कि पुणे में उन्हें सही दिशा मिली और वह सफलता प्राप्त करने में कामयाब रहे। मूल रूप से लातूर जिले के उदगीर तालुका के कोडाली गांव के रहने वाले कृष्णा ने अपने दृढ़ संकल्प के बल पर यह मुकाम हासिल किया है।
कृष्णा अपनी इस शानदार सफलता का श्रेय अपनी माँ की उस प्रबल इच्छा को देते हैं, जिसमें उनकी माँ ने यह सपना देखा था कि उनके ससुर (कृष्णा के दादा) एक सेवानिवृत्त शिक्षक बनें और उनका बेटा एक उच्च पद पर आसीन होकर देश की सेवा करे। माँ के इस सपने को साकार करने के लिए कृष्णा ने अथक प्रयास किया।
नांदेड़ के गुरु गोबिंद सिंह कॉलेज से इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी करने के बाद कृष्णा ने अपना पूरा ध्यान यूपीएससी की तैयारी में लगा दिया। उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने पहले ही प्रयास में यह उल्लेखनीय सफलता हासिल की। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस पूरी सफलता की असली सूत्रधार उनकी माँ ही हैं, जिन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया और उन्हें प्रेरित किया। कृष्णा की कहानी यह साबित करती है कि मजबूत पारिवारिक समर्थन और स्वयं पर अटूट विश्वास के साथ, किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, भले ही परिस्थितियां कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हों। उनकी यह उपलब्धि उनके परिवार और पूरे क्षेत्र के लिए गर्व का क्षण है।