खिचड़ी (Makar Sankranti) भारतीय खाद्य संस्कृति का अंग रही है। यह एक तरह का स्वास्थ्य वर्धक देशी फास्ट फ़ूड है। इसका उल्लेख प्राचीनकाल से ही होता आया है। कहा जाता है कि सबसे पहली चावल और तिल को मिलाकर खिचड़ी बनाई गई थी। संस्कृत में इसे खिच्चा कहा जाता था। वैसे आयुर्वेद में भी खिचड़ी (Makar Sankranti) का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद में इसे सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है। चरक संहिता के मुताबिक सूर्य के उत्तरायण होने का काल ऊर्जा संचरण का काल है, जिसकी शुरुआत खिचड़ी से होती है।
इतिहास में अबू फजल की आईने-अकबरी में खिचड़ी (Makar Sankranti) का जिक्र कई बार आया है। उस समय खास तरह की खिचड़ी अतिथियों के लिए बनायीं जाती थी। शाही रसोईघर में तैयार किए गए खिचड़ी के कई संस्करणों का उल्लेख मिलता है, जिनमें केसर, खड़े मसाले और सूखे फल शामिल होते थे। यह स्वाद और सुगंध में अनूठी होती थी। खिचड़ी के साथ घी जरूर परोसा जाता था। अकबर और बीरबल की खिचड़ी तो लोक प्रसिद्ध है।
कहा जाता है कि मुगल बादशाहों, शाहजादों और शहजादियों को भी खिचड़ी (Makar Sankranti) बेहद पसंद थी। अकबर की रसोई में बनने वाली खिचड़ी में दाल, चावल और घी बराबर मात्रा में पड़ता था। आईने-अकबरी में सात प्रकार की खिचड़ी का उल्लेख है। इतिहासकारों के मुताबिक़ खिचड़ी बादशाह जहांगीर और बेगम नूरजहां का प्रिय खाना था। शहजादियों के लिए बनाई जाने वाली खिचड़ी में स्वाद और सुगंध का विशेष ध्यान रखा जाता था। बादशाह को गुजराती खिचड़ी बेहद पसंद थी, जिसे लजीजा कहा जाता था और उसमें कई तरह के मसाले और मेवे पड़ते थे। मुगलों की रसोई में शाकाहारी के साथ मांसाहारी खिचड़ी भी बनाई जाती थी।
मुगलों के अलावा खिचड़ी (Makar Sankranti) को अंग्रेज़ों ने भी खूब पसंद किया। अंग्रेजों ने अपने संस्मरणों में भी इसका उल्लेख किया है। केटी आचाया की ‘डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड’ के मुताबिक इब्न बतूता, अब्दुर्र रज्जाक और फ्रांसिस्को प्लेजार्ट ने भी खिचड़ी के बारे में बहुत कुछ लिखा है। 1470 के एक रूसी यात्री अखन्सय निकितिन के मुताबिक उस समय खिचड़ी घोड़ों को भी खिलाई जाती थी, ताकि वे ताकतवर और फुर्तीले हों।