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देशभर में CAA लागू हो गया है। इस एक्ट के तहत तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थी जो हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई हो, उनको भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। मगर मुस्लिम समुदाय को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। हालांकि विपक्षी पार्टी शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने से साफ इनकार कर दिया।

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने इस कानून को भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के खिलाफ बताया है तो तमिलनाडु के CM स्टालिन ने भी इसका कड़ा विरोध किया है। स्टालिन ने 12 मार्च को कहा कि इसके नियम संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है। इसके अलावा उन्होंने इस कानून को बीजेपी का विभाजनकारी एजेंडा भी बताया।

जानें क्या कहता है भारतीय संविधान

हालांकि सवाल ये कि कुछ राज्य भले ही इसका विरोध कर रहे हों मगर क्या वो संसद में पारित हुए इस कानून को अपने राज्यों में लागू होने से रोक सकते हैं। जानकारों का कहना है कि संविधान के आर्टिकल 256 के तहत संसद की ओर से पास हुए किसी भी कानून को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ही है। इस आर्टिकल में ये भी कहा गया है कि राज्य सरकारें अपनी कार्यकारी शक्तियों का इस तरह से इस्तेमाल करें जिससे कि संसद की ओर से पास किए कानून के लागू होने में कोई दिक्कत न हो। इस मामले में केंद्र सरकार जरूरी निर्देश भी दे सकती है।

जहां तक कानून लागू किए जाने का सवाल है, कानूनी रूप से राज्य इसे लागू करने के लिए बाध्य है। इसके अलावा जानकारों का यह भी कहना है कि नागरिकता का मामला संघ सूची के तहत आता है, जिस पर संसद ही कानून बना सकती है। दरअसल, कानून बनाने के क्षेत्राधिकार के मसले पर संविधान में तीन सूचियों का जिक्र है। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। संघ सूची में रक्षा, विदेशी मामले, जनगणना, रेलवे और नागरिकता जैसे मसले आते हैं।

जाहिर है कि इन पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद के पास है। इसके बाद पुलिस, लॉ एंड ऑर्डर, हेल्थ जैसे मामलों पर राज्य सरकारें कानून बना सकती है। इसके अलावा कुछ मामले ऐसे भी हैं जिनको लेकर केंद्र और राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं। इसमें शिक्षा, शादी और अडॉप्शन जैसे मामले शामिल हैं।

हालांकि समझने वाली बात यह है कि केरल की विजयन सरकार ने न सिर्फ इस कानून का विरोध किया है, बल्कि केरल विधानसभा में इसके खिलाफ एक प्रस्ताव भी पास किया गया। साथ ही विजयन सरकार इस मुद्दे को लेकर SC का दरवाजा भी खटखटा चुकी है। मगर जानकार कहते हैं कि राज्य सरकार की ओर से पारित किए गए इस प्रस्ताव का ज्यादा महत्व नहीं है, क्योंकि संविधान की धारा 256 के मुताबिक किसी भी राज्य सरकार के पास इस कानून के लागू करने में मदद करने के अलावा कोई बहुत विकल्प नहीं है। हालांकि वो यह भी कहते हैं कि इस कानून के संवैधानिकता पर सवाल उठाने का अधिकार तो राज्य के पास है ही।

CAA के खिलाफ 156 अर्जियां दायर

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती देने वाली लमसम 156 अर्जियां दायर की जा चुकी हैं, जिन पर सुनवाई होना अभी बाकी है। 

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