आम आदमी पर पड़ी महंगाई की मार, अरहर-उड़द दाल के दाम 100 रुपए के पार

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नई दिल्ली॥ आम आदमी की रसोई पर मंहगाई की मार का असर ऐसा पड़ रहा कि उसकी खाने की थाली मंहगी होती जा रही है। प्याज के बाद अब दालों की कीमत काबू में लाने की सरकारी कोशिशें अभी तक सफल नहीं हुई है। सूत्रों के मुताबिक सरकार अब अरहर और उड़द दाल पर स्टॉक लिमिट लगाने की तैयारी कर रही है। दोनों दालों के दाम 100 रुपये के ऊपर चल रहें है। अरहर और उड़द दालों के दामों में काफी तेज हैं।

दोनों दालों के दाम 100 रुपये पार चले गए हैं। जून से लेकर अब तक अरहर दाल का दाम 35 फीसदी तक बढ़ा है जबकि उड़द दाल का भाव 40 फीसदी के करीब बढ़ा है। सरकार ने दालों के दाम को काबू में करने के लिए काफी कोशिशें की, लेकिन वो नाकाम साबित हुई है। कीमतों को काबू में करने के लिए सरकार ने दालों के आयात की डेडलाइन 15 नवंबर को बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दी है।

इसके बावजूद दालों के दाम कम होने के नाम नहीं ले रहे हैं। सरकार को इसमें जमाखोरी की आशंका लग रही है। व्यापारी दाल को बाहर नहीं निकाल रहे हैं और जो दाल आयात हुए हैं वो गोदामों में पड़ी सड़ रही है। ऐसे में सरकार विचार कर रही है इनके ऊपर एक स्टॉक लिमिट लगा दी जाए। क्वांटिटी टर्म में स्टॉक लिमिट लग सकती है। इसका फैसला जल्द हो सकता है।

खरीफ सीजन के दौरान दलहनी फसलों वाले राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मानसून की भारी बारिश ने खेत में खड़ी इन फसलों को चौपट कर दिया। इससे दलहन की पैदावार 82.3 लाख टन रह जाने का अनुमान है, जबकि कृषि मंत्रालय ने 1.01 करोड़ टन पैदावार का लक्ष्य निर्धारित किया था। दलहनी फसलों की बुआई का रकबा पिछले साल के 99.15 लाख हेक्टेयर के मुकाबले अभी लगभग 10 लाख हेक्टेयर कम है।

सामान्य तौर पर रबी सीजन में कुल दलहनी खेती 1.46 करोड़ हेक्टेयर में होती है। अभी तक चना का बोआई रकबा पिछले साल के 68.40 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 61.59 लाख हेक्टेयर रहा है। सीजन के आखिर तक चने का औसतन कुल रकबा 93.53 लाख हेक्टेयर रहता है। घरेलू दालों में चना दाल की हिस्सेदारी 40 फीसदी से ज्यादा रहती है।

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