हमारे देश में पुरानी कहावत है उठी पैंठ (बाजार) सात दिन बाद ही लगती है । ‘ऐसा ही सियासी बाजार का हाल है, अगर एक बार आप चूक गए तो वह मौका आपको पांच वर्ष बाद ही मिलेगा’ ? यानी चुनाव में बाजी आपके हाथ नहीं लगी तो आपको अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए 5 वर्षों का इंतजार करना होगा ।
ऐसे ही इन दिनों बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर छोटे राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच देखा जा रहा है । एक ओर जहां जेडीयू के मुखिया मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सत्ता में वापसी के लिए तमाम सियासी हथकंडे अपनाए हुए हैं वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस समेत कई दलों से बना महागठबंधन है जो अभी तक एनडीए से निपटने के लिए अपने आप को मजबूत नहीं कर पा रहा था अब एक और नई मुसीबत से घिर गया है ।
‘अब महागठबंधन से निकलने के लिए कई ऐसे छोटे दलों के नेता है जो बिहार चुनाव के लिए तीसरा मोर्चा यानी एक और थर्ड फ्रंट बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं’ । बिहार में तीसरे मोर्चे की छटपटाहट इसलिए है कि महागठबंधन में कई छोटी पार्टियों में असंतोष व्याप्त है । दो दिन पहले रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र सिंह कुशवाहा ने महागठबंधन में शामिल राजद के तेजस्वी यादव का बिहार विधानसभा चुनाव में नेतृत्व अस्वीकार कर दिया है । उपेंद्र सिंह कुशवाहा के इस फैसले के बाद ही बिहार में कई छोटे-मोटे दल अब तीसरा मोर्चा बनाने के लिए सक्रिय हो उठे हैं ।
पहले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने महागठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला। अब रालोसपा और भाकपा ने भी थर्ड फ्रंट बनाने की जोरदार वकालत कर दी है । भाकपा माले की महागठबंधन में बात बनती नहीं दिख रही है। ‘जन अधिकार पार्टी के मुखिया और बाहुबली पप्पू यादव, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, यशवंत सिन्हा के नेतृत्व वाला राष्ट्र मंच और शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल के साथ गठबंधन हो और बिहार के और भी छोटे दलों को इस मोर्चे में शामिल किया जाए’।
वहीं वंचित बहुजन आघाड़ी विकास पार्टी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने भी तीसरे मोर्चे में शामिल होने के संकेत दिए हैं । साथ ही तीसरा मोर्चा बनाने के लिए विकासशील इंसान पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी तीसरे मोर्चे बनाने के पक्षधर हैं । ‘लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ये छोटे राजनीतिक दल थर्ड फ्रंट बनाने के लिए किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी वह अपने साथ मिलाना चाहते हैं जिसकी धमक दिल्ली तक हो’।
ऐसे में बिहार के कई स्थानीय दल लोक जनशक्ति पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, और आम आदमी पार्टी को भी थर्ड फ्रंट में आने की पहल कर रहे हैं । यहां आपको बता दें कि लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान भाजपा और जेडीयू से नाराज चल रहे हैं ऐसे में अभी चिराग के रुख का भी इंतजार किया जा रहा है । ऐसे में बहुत कुछ लोक जनशक्ति पार्टी के फैसले पर निर्भर होगा।
बिहार में महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस ऐसे दो दल है जो सबसे बड़े माने जाते हैं । महागठबंधन में दर्जनों छोटी मोटी राजनीतिक पार्टियां भी शामिल हैं । ‘अब अगर इसी महागठबंधन से निकलकर ये दल अलग मोर्चा बनाते हैं तो सबसे बड़ा नुकसान राजद को ही होने वाला है । वहीं सबसे बड़ा फायदा भाजपा और जेडीयू को रहेगा’ ।
लालू प्रसाद यादव के जेल में होने के चलते राजद पहले ही परेशानी में घिरी नजर आ रही है, वहीं थर्ड फ्रंट से उसकी मुश्किलें और बढ़ रहीं हैं । दरअसल राजद का मुख्य वोट बैंक यादव, मुस्लिम गठजोड़ रहा है । ऐसे में यदि तीसरा मोर्चा बिहार में बनता है तो इस वोट बैंक में सेंध लग सकती है । क्योंकि जिन पार्टियों के गठबंधन करने की चर्चाएं हैं उनका वोट बैंक भी ओबीसी, यादव और मुस्लिम ही हैं । वहीं असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम में मुस्लिम, जन अधिकार पार्टी में यादव और बसपा में दलित वोट बैंक की पार्टी मानी जाती है ।
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी इस कोशिश में लगी हुई है कि कोई तीसरा मोर्चा न बने, लेकिन राजद के रुख से कांग्रेस नेता सशंकित हैं। भाकपा माले की इस पहल पर बाकी वामपंथी दलों की निगाह भी है। यहां हम आपको बता दें कि हालांकि इन छोटी पार्टियों का अभी बिहार में कोई खास जनाधार नहीं है लेकिन यह पार्टियां वोट काट सकती हैं और जिन सीटों पर कांटे की टक्कर होने की संभावना है वहां यह संभावित तीसरा मोर्चा काफी अहम साबित हो सकता है ।