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पवन सिंह
कर्नाटक में दोनों गुजराती औंधे मुंह धराशाई हुए। उत्तर प्रदेश में सम्पन्न हुए निकाय चुनाव को लेकर आज अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ। विज्ञापन बहुत कुछ कहता है। विज्ञापन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रोगी आदित्य नाथ को सीधे ही खारिज करता है। यानी योगी आदित्यनाथ के चढ़ते ग्राफ से दोनों गुजराती परेशान हैं..। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव का सारा श्रेय मोशा की जोड़ी लेना चाहती है। लेकिन सच यह है कि यह योगी की अकेले की जीत है। इस विजय को मुख्यमंत्री योगी का केवल कुशल चुनावी प्रबंधन ही नहीं कहा जाएगा अपितु उन्होंने प्रदेश की जनता को कानून व्यवस्था के दुरूस्त होने की जो मैसेज देने की कोशिश की, उसे जनता ने स्वीकार किया है। यानी मैसेज सही कन्वे हुआ।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने कड़क शासन का परसेप्शन आवाम के बीच सेट करने में सफल रहे हैं। बतौर एक जर्नलिस्ट मैं यह कह सकता हूं कि उत्तर प्रदेश को लेकर जिस तरह से केन्द्रीय  नेतृत्व निहायत संजीदा रहता है ऐसा इस बार नहीं हुआ। यानी पूरा  नगर निकाय चुनाव योगी के सामने एक परीक्षा की तरह छोड़ दिया गया। हालांकि, यह परंपरागत सोच है कि निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव और उप चुनावों की यह तासीर रही है कि जिसकी सत्ता होती है, उसका चुनाव होता है... लेकिन अगर इस निकाय चुनाव को देखा जाए तो मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत छवि का जो औरा था, उसकी रौशनी में यह चुनाव भाजपा ने जीता। कहीं से कोई बड़ी या सशक्त राजनीतिक चुनौती भाजपा के लिए नहीं थी।

यूपी नगर निगम/पंचायत में  भाजपा की यह जीत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपने बलबूते पर जीत है। इस समूचे नगर निकाय चुनाव में न तो मोदी और न शाह और न कोई भी केंद्रीय मंत्री चुनाव प्रचार करने आया। पूरा अमला, गाजे-बाजे, हनुमान, बजरंग दल के साथ कर्नाटक में जुटा था। आपको याद दिला दूं  इससे पूर्व जब दिल्ली में एमसीडी के चुनाव थे तो यही अमित शाह दिल्ली की  गलियों में  घूम-घूम कर वोट भाजपा के लिए मांग रहे थे।

मेरा अपना आंकलन है कि उत्तर प्रदेश के संदर्भ में मोदी-शाह यानी मोशा अपनी प्रासंगिकता तेजी से को रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में अपने आप को पुरी शिद्दत से मजबूत किया है। उत्तर प्रदेश को नई पहचान मिले इसके लिए वो दो तरफा काम कर रहे हैं। पहला सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर और दूसरा विकास के विविध आयामों पर..दीपोत्सव, देव दीपावली, धार्मिक शोभा यात्राएं, पुराने धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण हो या इन्वेस्टर्स समिट..। कितना निवेश आया, कितना नहीं आया यह एक अलहदा विषय है.. लेकिन उनके प्रयासों को नकारा तो नहीं जा सकता है। अपराधियों के इनकाउंटर पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं लेकिन प्रदेश का बहुसंख्यक वोटर इस तरह की कार्रवाई को जायज मानता है।

मुझे ऐसा लगता है कि योगी अब मोशा से इतर अपनी छवि और पकड़ दोनों मजबूत कर रहे हैं।‌ वह नहीं चाहते कि मोशा में उनका अक्स नज़र आए। वह अपनी इंडिपेंडेंट छवि खड़ी कर चुके हैं, कम से कम उत्तर प्रदेश में  जरूर। ज्यों-ज्यओं समय बीत रहा है त्यों-त्यों मोशा की राजनीति एक्सपोज़ हो रही है। लोग यह मानने लगे हैं कि मोशा का उनके सरोकारों से कोई लेना-देना नहीं है। मोदी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन पर सबसे ज्यादा चुटकुलेबाजी, कार्टूनबाजी, मज़ाक़िया मीम्स..बन रहे हैं। सोशल मीडिया ने तो मजाक बनाकर रख दिया है। लोगो में धीरे-धीरे मोदी को लेकर नापसंदगी बढ़ रही है लेकिन योगी आदित्यनाथ में एक उम्मीद नजर आ रही है....बस यही उम्मीद मोशा को पसंद नहीं है और आज का विज्ञापन भी कुछ कहता है....(लेखक पवन सिंह एक ख्याति प्राप्त पत्रकार और साहित्यकार हैं।

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