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लखनऊ।। न्यूज प्रिंट पर GST लागू होने के साथ ही अखबारों की बंदी और पत्रकारों की बेरोजगारी तय हो गयी थी। उम्मीद के वेंटिलेटर पर लेटे प्रकाशक और पत्रकारों की निगाहें आज GST कौंसिल की मीटिंग पर हैं। संभावना जताई जा रही है कि सीमित संसाधनों और कम प्रसार वाले लघु समाचार पत्रों के लिए न्यूज प्रिंट पर से GST हटा लिया जाये। या फिर हर वर्ग के (लघु, मध्यम और बड़े) समाचार पत्रों के न्यूज प्रिंट और छपाई के खर्च पर 5% GST घटाकर डेढ़ 2 प्रतिशत कर दिया जायेगा।राहत नहीं मिली तो लखनऊ में अरूण जेटली से गुहार लगायेंगे यूपी के पत्रकार।

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इस आखिरी उम्मीद पर निगाहें लगाये अखबार कर्मी/ पत्रकार और प्रकाशक GST मीटिंग के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। वित्त मंत्री अरूण जेटली की अध्यक्षता में GST कौंसिल की विशेष बैठक में अखबारों को राहत मिलने की उम्मीद जतायी जा रही है।
ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक अखबार हैं। जिनके बंद होने से यहां सबसे अधिक यानी हजारों पत्रकार /अखबार कर्मी बेरोजगार हो सकते हैं।

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लोकसभा चुनाव का चुनावी वर्ष शुरु होने जा रहा है। इसके अतिरिक्त अरुण जेटली उत्तर प्रदेश से राज्य सभा भेजे जा रहे हैं। इन राजनीति कारणों से भी अखबारों को जीएसटी से मुक्ति मिलने की संभावना जताई जा रही है।

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अगर उम्मीद टूट गयी तो आने वाले कुछ ही महीनों में देश के 90%अखबार इतिहास बन जायेंगे और हजारों अखबार कर्मी/पत्रकार बेरोजगारी का शिकार होकर पकौड़े बेचने जैसा कोई धंधा तलाशेंगे।लाखों अखबार कर्मियों और पत्रकारों को रोजगार पर लगाने वाले देश में लगभग बीस हजार DAVP मान्यता प्राप्त अखबार हैं।(अभी डेढ़ साल में DAVP की सख्त नीति से 25%अखबार बंद हो चुके हैं। कुल अखबार तीन वर्गों मे हैं।

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विभिन्न भाषाओं के तकरीबन एक हजार ही अखबार बड़े/ब्रान्ड अखबार हैं। इन तरह के बड़े/ब्रांड /नामी अखबारों के 10 से 20 संस्करण होते हैं। 20 संस्करण वाला अखबार अपने सारे संस्करणों का प्रसार अगर पन्द्रह लाख दिखा रहा है तो वो वास्तविक रूप मे तीन लाख ही छापता है।

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इसके बाद सैकेंड लाइन के अखबारों की संख्या 8-9 हजार के करीब है। ये अखबार रोज समय से छपते हैं और अखबारों के सेंटर तक आते है, इस तरह के अखबारों की वास्तविक रीडर शिप दो सौ से हजार तक ही है। इसलिए पांच सौ से दो हजार ही छपते हैं। लेकिन इन्होने DAVP से 45 से 74 हजार तक का प्रसार एप्रूव करवाया हैं।

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देश के कुल दैनिक DAVP अखबारों के आधे यानी तकरीबन दस हजार अखबार फाइल कापी अखबार कहे जाते हैं। ये 100 से 200 कापी ही छपवा पाते है। लेकिन इन लोगों ने 10 से 25 हजार के बीच प्रसार की डीएवीपी मान्यता करवायी है।कुल मिलाकर हर वर्ग का प्रसार के मामले में अलग-अलग झूठ है। कोई 98% तो कोई 70%झूठ बोलता है। झूठ सब बोलते हैं क्योंकि सच कोई बोल नहीं सकता। सरकार की पालिसी इनसे झूठ बुलवाता है।

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अब बताइये! दो सौ कापी छपवाने वाला छोटे अखबार का प्रकाशक 10 हजार अखबार के न्यूज प्रिंट का रोज लाखों का GST का ब्यौरा कैसे देगा ? 20 संस्करणों के तीन लाख अखबार छापने वाला बड़े अखबार का प्रकाशक 30 लाख अखबारों के न्यूज प्रिंट के खरीद का रोज करोड़ों रपये का GST का हिसाब कैसे देगा ? दे ही नहीं सकता। और अगर दिया तो चंद दिनों में फर्जी तरीके से GST की रकम भरकर लुट जायेगा प्रकाशक।

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छोटे से लेकर बड़े अखबार के प्रकाशक प्रसार में इतना झूठ बताकर भी झूठे नहीं हैं। क्योकि वो झूठ नहीं बोलना चाहते लेकिन DAVP की गलत नीतियां इन्हें झूठा प्रसार बताने के लिए मजबूर करती हैं। 9O%अखबार पूरी तरह से सरकारी विज्ञापन पर ही निर्भर हैं। जबकि 10 % ब्रांड /बड़े अखबारों का लगभग आधा खर्च सरकारी अखबारों पर निर्भर है।

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यदि ये अपना वास्तविक प्रसार बताकर सरकारी दरें लें तो वो सरकारी दरें इतनी कम होंगी कि इन दरों के विज्ञापनों पर निर्भर रहकर कतई तौर पर अखबार नही निकाला जा सकता है।यदि कम प्रसार पर ही सरकारी विज्ञापन की अच्छी दरें सरकार दे तो प्रकाशक प्रसार की दावेदारी में इतना बड़ा झूठ क्यों बोलें।

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GST के होते अखबारी कागज की खरीद को साबित करना पड़ेगा और प्रकाशक को उतने अखबारों के GST का हिसाब बताना होगा जितने प्रसार की उसने DAVP से मान्यता ली है। ये कैसे संभव हो सकता है! हमने 35 हजार प्रसार की मान्यता ली है और एक हजार अखबार छापते है तो 35 हजार अखबार के कागज और प्रोडक्शन कास्ट का हिसाब कैसे देंगे।

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इन कड़वी सच्चाईयों के होते GST देश के करीब 90 अखबार बंद कराकर पत्रकारों और अखबार कर्मियों को बेरोजगार कर ही देगा।
इस सच से भयभीत अखबार कर्मियों और हजारों पत्रकारों /प्रकाशकों को आज जिन्दा रहने की एक आखिरी उम्मीद पर निगाहें लगाये हैं। । इनके सोर्स बताते हैं कि आज जीएसटी कौंसिल की बैठक में अखबारों को जानलेवा जीएसटी से राहत मिल सकती है।

नवेद शिकोह (स्वामी नवेदानंद) की फेसबुक वाल से

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