इस्लामाबाद। अमेरिका और भारत इस कॉरिडोर पर शुरू से ही योजना के खिलाफ है और अपनी आपत्ति भी दर्ज करा चुका है। इसके बावजूद पाक ने इस पर एक प्राधिकरण का गठन किया है। बतातें चलें कि, अमेरिकी चिंताओं को दरकिनार करते हुए इमरान सरकार ने चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर को समय पर पूरा करने के मकसद से एक प्राधिकरण का गठन किया है।
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इस प्राधिकरण के पहले अध्यक्ष के रूप में पाक सेना के लेफ्टिनेंट-जनरल (retd) असीम सलीम बाजवा को नियुक्त किया है। इस प्राधिकरण का मकसद कॉरिडोर को समय से पूरा करना है। बता दें कि प्रधानमंत्री इमरान खान की बीजिंग यात्रा से पहले अक्टूबर में एक अध्यादेश के माध्यम से प्राधिकरण की स्थापना की गई थी। हालांकि, मंगलवार को बाजवा को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा प्राधिकरण (CPECA) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।
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यह प्राधिकरण पाकिस्तान की योजना और विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है। नए अध्यक्ष का कार्यकाल चार वर्ष के लिए होगा। सेवानिवृत्ति से पहले बाजवा सेना के दक्षिणी कमान के कमांडर के रूप में कार्य कर चुके हैं। हाल में इस कॉरिडोर को लेकर ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को सख्त चेतावनी दी थी।
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अमेरिका ने कहा था कि अगर वह चीन के साथ इस कॉरिडोर योजना पर आगे काम करता है तो उसको गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पाकिस्तान के इस कदम से एक बार फिर अमेरिका और पाकिस्तान संबंध और भी बिगड़ सकते हैं। आर्थिक गलियारा पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर चीन के शिनजियांग प्रांत के काशगर तक लगभग 2,442 किमी लंबी एक परियोजना है l इसकी लागत 46 अरब डॉलर आंकी जा रही है।
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चीन इसके लिए पाकिस्तान में इतनी बड़ी मात्रा में पैसा निवेश कर रहा है कि वो साल 2008 से पाकिस्तान में होने वाले सभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के दोगुने से भी ज़्यादा है। चीन का यह निवेश साल 2002 से अब तक पाकिस्तान को अमेरिका से मिली कुल आर्थिक सहायता से भी ज़्यादा है। भारत द्वारा इसका विरोध इस कारण किया जा रहा है, क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान में गुलाम कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के विवादित क्षेत्र बलूचिस्तान से होते हुए जाएगा।
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