सीता के जाने के बाद भी वर्षों जीवित रहते हुए भगवान राम ने किया था ये काम, इस तरह हुई थी मृत्यु!

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क्या आप जानते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मृत्यु कैसे हुई थी। आइये जानते हैं भगवान राम के जीवन से जुड़ा यह सत्य। हालाँकि ज्यादातर लोग जानते हैं कि ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में भगवान् राम की मुलाकात अपने पुत्रों लव-कुश और पत्नी सीता से हुई थी। लोग यह भी जानते हैं कि कैसे अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद सीता ने अपने जीवन का त्याग कर दिया था। राम अपने पुत्रों के साथ अयोध्या लौट आये और महल में उनके लिए एक नया घर बनाया। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि मां सीता के पृथ्वी में समा जाने के बाद भगवान् राम के शेष जीवन का क्या हुआ?

बता दें कि भगवान राम के जीवन का अंत कैसे हुआ, इसकी जानकारी वाल्मीकि की रामायण से नहीं, बल्कि पद्म पुराण से मिलती है। सीता को खो देने के बाद, भगवान राम ने कई वर्षों तक अयोध्या में शासन किया। इस दौरान उन्होंने अपने पुत्रों को राज्य का कामकाज संभालने के लायक बनाया।

अपने शासन के दौरान भगवान राम ने अयोध्या के लोगों के लिए कई यज्ञ भी किये. अयोध्या की प्रजा पहले से ही राम को अयोध्या का सबसे अच्छा और आदर्श राजा मानती थी। राम का जीवन ऐसे ही चलता रहता है। एक दिन एक बुद्धिमान ऋषि राजा राम से मिलने आये और उन्होंने एकांत में भगवान राम से कुछ महत्वपूर्ण बात करने की अनुमति मांगी। राम विनम्रतापूर्वक ऋषि की बातें सुनने के लिए भूमि पर बैठ गये।

ऋषि की सलाह के अनुसार, राम ने अपने भाई लक्ष्मण से कहा कि वह दरवाजे पर ही रहें और इस महत्वपूर्ण बातचीत के दौरान यदि कोई आता है तो उसे प्रवेश करने की अनुमति ना दें। आपको बता दें कि भगवान राम से मिलने आये ऋषि कोई और नहीं बल्कि समय के रूप में काल देव आये थे। काल देव भगवान राम को यह याद दिलाने के लिये आये थे कि अब पृथ्वी पर उनका ‘समय’ समाप्त हो गया है और उन्हें अब अपने मूल निवास वैकुंठ लौट जाना चाहिए।

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भगवान राम और काल देव के बीच चल रही गोपनीय बातचीत के दौरान ही महर्षि दुर्वासा का आगमन होता है। महर्षि दुर्वासा अपने क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते थे। महर्षि दुर्वासा ने राम से तत्काल मुलाकात करनी चाही।

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लक्ष्मण महर्षि दुर्वासा को स्थिति समझाने का प्रयास करते हैं, लेकिन महर्षि दुर्वासा नहीं मानते हैं। वह लक्ष्मण पर क्रोधित हो जाते हैं और यहां तक कह देते हैं कि अगर उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया तो वह लक्ष्मण को श्राप दे देंगे। लक्ष्मण को समझ नहीं आता कि वह भाई के आदेश की अवहेलना करें या श्राप सहें।

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जब लक्ष्मण को इस बात का एहसास होता है कि यह सारी स्थिति उन्हें उनका अंतिम मार्ग दिखाने का संकेत थी। वह सरयू नदी में समा जाते हैं और अनंत शेष का रूप ले लेते हैं। उधर भगवान राम, महाविष्णु के राम अवतार को समाप्त करने के तैयारी में होते हैं, तभी उन्हें लक्ष्मण के बारे में पता चलता है। वह भी सरयू नदी में अदृश्य देवों के साथ चलते जाते हैं और इस प्रकार, उनका राम अवतार समाप्त हो जाता है।

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सरयू में समाने के तुरंत बाद महाविष्णु अपने मूल रूप में, उसी स्थान पर प्रकट होते हैं, जिस स्थान पर लोग पहले से ही इकट्ठा थे। उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया। राम विष्णु और लक्ष्मण आदिशेष हो गये थे।

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हालांकि ज्यादातर लोग मानते हैं कि राम का अंत ऐसे ही हुआ था फिर भी कुछ लोगों की इससे अलग राय है। पुराणों में इस बात का जिक्र है कि ब्रह्माण्ड के पालन हार भगवान विष्णु अपने अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकते हैं। ब्रह्माण्ड के विनाशक के रूप में केवल शिव ही यह काम कर सकते हैं।

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तार्किक नजरिये से समझा जाये तो भगवान राम का अंत भी विष्णु के पहले अवतारों की तरह ही हुआ था। जैसे कि कालिका पुराण में जिक्र है कि अपने कर्तव्यों की पूर्ति के बाद विष्णु का वराह अवतार पारिवारिक संबंधों के मोह-माया में फंस गया था। उस स्थिति में वराह ने स्वयं अपना जीवन समाप्त नहीं किया, बल्कि देवताओं ने शिव की मदद लेने के लिए कैलाश का रुख किया।

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देवताओं की विनती के बाद शिव पक्षी-जानवर से बना शरभ अवतार लेते हैं जो वराह से युद्ध करके विष्णु अवतार को मुक्त कराते हैं। इसी तरह भगवान शिव के शरभ अवतार ने नरसिंह अवतार को भी नष्ट किया था।

भगवान राम स्वेच्छा से अपना अस्तित्व त्यागने वाले पहले अवतार थे क्योंकि उन्होंने एक आदर्श मानव (पुरुषोत्तम) का जीवन जिया। उन्हें लोगों के सामने धर्म का एक उदाहरण स्थापित करना था। एक रहस्यमय जानवर के हाथों एक हिंसक मृत्यु उनके इस अवतार के लिए उचित नहीं था। इसलिए उन्होंने नदी में समाकर इस अवतार को समाप्त किया।

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