नैनीताल। अपनी खूबसूरत वादियों और झीलों के लिए मशहूर उत्तराखंड का नैनीताल (Nainital History) जिले में पूरे साल सैलानियों की आवाजाही बनी रहती है। नैनीताल की खूबसूरती और ठंडी आबोहवा सैलानियों को अपनी ओर खींच ही लेती है। कहा जाता है कि एक समय था जब नैनीताल के आसपास 60 से भी अधिक झीलें हुआ करती थीं। हालांकि अब इनमे से बहुत से झीलें खत्म हो चुकी हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड की इस सरोवर नगरी का नाम नैनीताल क्यों और कैसे पड़ा? आइये आज हम आपको नैनीताल के इतिहास और इसके नाम से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे ने विस्तार से बताते हैं।
नैनीताल (Nainital History) के रहने वाले इतिहासकार डॉ. अजय रावत बताते हैं कि साल 1841 में पीटर बैरन नाम के एक अंग्रेज ने नैनीताल शहर की खोज की थी और इस खूबसूरत शहर की जानकारी दुनिया को दी थी। इसके बाद यहां बसासत शुरू हुई। साल 1862 में नैनीताल को नार्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया और इसे छोटी विलायत कहा जाने लगा। इ कहते हैं कि भले ही यह शहर 1841 में दुनिया के सामने पहचान में आया हो, लेकिन इससे पहले भी यह एक खास जगह हुआ करती थी और इसे पवित्र भूमि का दर्जा मिला हुआ था।
इतिहासकार कहते हैं कि नैनीताल (Nainital History) का वर्णन स्कंद पुराण के मानस खंड में भी किया गया है। डॉ. अजय रावत का कहना है कि इस जगह को पहले अत्रि ऋषि सरोवर के नाम से जाना जाता था। धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है कि अत्रि, पुलस्थ्य और पुलह नाम के तीन ऋषियों ने यहां तपस्या की थी और यहां एक बड़ा सा गड्ढा बनाकर उसमें कैलाश मानसरोवर का पानी भर दिया था। कहा जाना है कि आज भी नैनी झील में नहाने से मानसरोवर जैसा ही पुण्य प्राप्त होता है। इस शहर का प्राचीन और विश्व विख्यात शक्तिपीठ नयना देवी मंदिर आज भी लोगों के लिए आस्था का केंद्र है।
पंडित मार्कण्डेय जोशी BTATAE हैं कि नैनीताल का मां नयना देवी मंदिर 64 शक्तिपीठों में शामिल है। इसके बारे में कहा गया है कि जब महादेव अपनी पत्नी सती का अधजला शव लेकर आकाश मार्ग से कैलाश की तरफ जा रहे थे। उस वक्त माता सती की आंख इस स्थान पर गिर गई। इसके बाद यहाँ पर नयना देवी मंदिर की स्थापना हुई और इस शहर का नाम नैनताल पड़ा और बाद में इसे बदलकर नैनीताल कर दिया गया। (Nainital History)
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