अमेįरका दुनिया में न्याय, मानवाधिकार और निष्पक्ष लोकतंत्र कायम करने की बात करता है। वह खुद को इसके मॉडल के तौर पर पेश करता है, लेकिन, वास्तविकता में ऐसा है नहीं। एशियाई और अफ़्रीकी मूल के लोगों के साथ इस आधुनिक देश में आज भी घोर नस्लीय भेदभाव होता है। एक भारतीय मेडिकल छात्र के साथ अमेरिका में जो कुछ हुआ और हो रहा है, वह अमेरिकी न्याय और निष्पक्षता के दावे की पोल खोलता है। एक पीएचडी. एमआईटी से स्नातक डॉ. विशाल सक्सेना के साथ मारपीट की गई, उसे धमकाया गया। उसे बगैर बताए कॉलेज से स्वेच्छा से वापस ले लिया गया। उस छात्र की एकमात्र कमीं, एक चिकित्सीय स्थिति थी, जो उसे फार्मेडहाइड के धुएं के संपर्क में आने से रोकती थी। यह एक रसायन है, जिसका उपयोग शरीर रचना विज्ञान प्रयोगशाला में शवों को संरक्षित करने के लिए किया जाता था।
भारतीय छात्र डॉ. विशाल सक्सेना ने यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल से शरीर रचना विज्ञान का कोई सुरक्षित तरीका बताने को कहा था। बताते चलें कि कई सुरक्षित तरीके पहले से ही मौजूद हैं और कालेज आमतौर पर अपने छात्रों को शरीर रचना विज्ञान सुरक्षित रूप से सीखने में मदद करते हैं। कोलंबिया जैसे कालेज अपने छात्रों को कठिन समय दिए बगैर सीखने के मानवीय तरीके खोजने के लिए पीछे की ओर जाते हैं। वास्तव में कई कालेज फार्मेडहाइड आधारित शिक्षा से दूर जा रहे हैं, क्योंकि फार्मेडहाइड जहरीला रसायन है और अब अधिकाँश देशों में प्रतिबंधित है।
ऐसे में एक बड़ी अमेरिकी यूनिवर्सिटी में जहरीले फार्मेडहाइड का इस्तेमाल कई तरह के सवाल खड़े करता है। सूत्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल द्वारा दुनिया के अधिकाँश देशों में प्रतिबंधित जहरीले रसायन फार्मेडहाइड के इस्तेमाल के पीछे प्राप्त होने वाला रेवेन्यू है। इससे तो यही साबित होता है कि अमेरिका की यह प्रतिष्ठित मेडिकल यूनिवर्सिटी रेवेन्यू के लिए भारतीय मेडिकल छात्रों को बलि का बकरा बना रही है। रेवेन्यू के आगे मानवीय संवेदनाएं और पीड़ा गौड़ है। इसे अमेरिकी भौतिकतावाद का चरम कह सकते हैं।
इस सबके बावजूद यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल ने एक के बाद एक बहाने बनाते हुए भारतीय छात्र डॉ. विशाल सक्सेना को नौ वर्षों से अधिक समय तक इधर-उधर भटकने के लिए मजबूर किया। अंततः डॉ. विशाल सक्सेना को अदालत में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि अदालत में भी उसकी दुश्वारियां खत्म ख़त्म होने के बजाय बढ़ती ही गयी। यूनिवर्सिटी ने डॉ. विशाल सक्सेना के खिलाफ पैरवी करने के लिए उसके ही वकील को तैयार कर लिया।
इस तरह मुकदमे में जब डॉ. विशाल सक्सेना का वकील यूनिवर्सिटी के पक्ष में काम करने लगा तो डॉ. विशाल सक्सेना ने दूसरे वकील की सेवा ली, लेकिन फिर उसी कहानी की पुनरावृत्ति हुई। दूसरे वकील ने भी भारतीय मेडिकल छात्र डॉ. विशाल सक्सेना को धोखा दे दिया। इस तरह एक के बाद एक उस भारतीय छात्र ने दस वकील पैरवी के लिए किये, लेकिन सभी का व्यवहार एक जैसा ही रहा। इसे संयोग तो कतई नहीं कहा जा सकता है। यही नहीं, अदालत में जज ने भी भारतीय मेडिकल छात्र डॉ. विशाल सक्सेना के खिलाफ कई पक्षपातपूर्ण फैसले दिये हैं। जज ने अदालत को सूचित किया कि उनका रिश्तेदार विश्वविद्यालय के संबद्ध अस्पताल में कार्यरत है।
भारतीय मेडिकल छात्र डॉ. विशाल सक्सेना के साथ हुए इस अलोकतांत्रिक, अमानवीय और बर्बर व्यवहार की जितनी भी निंदा की जाए, कम है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स के नस्लीय व्यवहार के चलते एक होनहार भारतीय छात्र का कैरियर प्रभावित हुआ है। उसे सालों साल भटकना पड़ा है। उसके घर वालों के सपने चूर हुए हैं। इन सबकी भरपाई असंभव है। यह तो एक उदाहरण भर है। ऐसा ही न जाने कितने एशियाई खासतौर से भारतीय व अफ़्रीकी मूल के लोगों के साथ होता होगा। यह अमेरिका की सच्चाई है। उस महाबली आधुनिक और सभ्य देश की, जो दुनिया को मानवाधिकार, न्याय और लोकतंत्र का पाठ पढ़ाता है। एशियाई देशों खासतौर से भारतीयों को उसकी असलियत को समझना होगा।
गौरतलब है कि विगत कुछ दशकों से भारतीय छात्रों के बीच अमेरकी विश्वविद्यालयों का क्रेज़ बढ़ा है। हर वर्ष बड़ी संख्या में भारतीय छात्र अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए जाते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। हालांकि, इसके साथ ही भारतीय छात्रों के सामने समस्याएं भी विकराल हुई हैं। उनके साथ भेदभाव आम बात है। यूरोपीय देशों के छात्रों के मुकाबले भारतीय छात्रों को पिछड़ा माना जाता है। उनपर भद्दे कमेंट किये जाते हैं। यह भी विडंबना ही है कि विश्वविद्यालय प्रशासन प्रायः उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेते। इसके चलते अमेरिका में अक्सर नस्लीय हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं।
बताते चलें कि विगत कुछ महीनों में अमेरिका में कई छात्रों की मौत के मामले भी सामने आये हैं। हाल ही में कई सप्ताह से एक लापता भारतीय छात्र का शव मिला है। अमेरिका में भारतीय छात्रों के हो रहे उत्पीड़न और शोषण के मुद्दे पर भारत सरकार को अमेरिकी सरकार से सख्ती से बात करना चाहिए, ताकि भारतीय छात्रों का हित सुरक्षित रहे और वो विदेशी धरती पर शोषित होने से बच सकें। अगर ऐसा नहीं होता तो वो दिन दूर नहीं हैं, जब अमेरिकी शिक्षण संस्थाओं से भारतीय छात्र परहेज करने लगेंगे।
( ये लेख अमेरिका में पीड़ित भारतीय छात्र डॉ. विशाल सक्सेना के परिजनों से हुई बातचीत पर आधारित है )
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