कहा जाता है कि मां जाने अनजाने ही सही मगर अपने बच्चों के लिए कई बार ऐसे कदम उठा लेती है जो उनके जीवन के लिए अमृत साबित होते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ जॉर्ज जेकब दास नाम के एक युवक के साथ। बालासोर ट्रेन हादसे में सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई। इस हादसे के बाद कुछ परिवारों की जिंदगी हमेशा हमेशा के लिए बदल गई। मगर इसी बीच कुछ परिवारों से अच्छी खबर भी आ रही है। ये वो परिवार है जो किसी कारण के चलते इस हादसे से बच निकले।
39 वर्षीय एसके दास के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एसके दास अपनी पत्नी सुमिता और 16 वर्षीय बेटे जॉर्ज जैकब दास के साथ यात्रा कर रहे थे। जॉर्ज की सीट कोच बी 1 में थी जबकि माता पिता की सीट भी पास में थी। घटना के थोड़े समय पहले ही मां बाप जॉर्ज की सीट बदलने की बात कर रहे थे। पिता ने कहा कि वो भी एक बोगी में जाएंगे और टीटी से बात करेंगे कि जॉर्ज की सीट बदल दी जाए। मगर इसी बीच मां ने कहा कि वो डिनर करके जाएं और अपनी बेटी को भी बीजू बोगी में बुला लिया।
दास बात करते हुए बताते हैं, मैं अपनी बेटे के साथ टीटी से चेंज करने का अनुरोध करने के लिए बीच जाने ही वाला था। तब मेरी पत्नी ने सुझाव दिया कि डिनर के बाद चली जाए। तब ट्रेन कटक के पास होगी। बाद में हमें पता चला कि कोच में कुछ यात्रियों की मौत हो गई है जबकि हादसे में कई लोग घायल भी हो गए।
चारों तरफ पड़ी थी लाशें
उन्होंने आगे कहा, जब हमारे बेटे की सीट बदलने की चर्चा हो रही थी, तब हमने टकराने की आवाज सुनी। ट्रेन हिलने लगी। लोग एक दूसरे से टकरा रहे थे। महिलाएं और बच्चे रो रहे थे। जब मैं कोच से बाहर आया तो मैंने देखा चारों तरफ हाथ पैर बिखरे हुए हैं, जबकि किसी का चेहरा बुरी तरह से खराब हो चुका है और लोग अंधेरे में भाग रहे हैं।
दास ने बताया कि उन्होंने कोच के अंदर फंसे लोगों को बचाने की कोशिश भी की और इसके बाद वो रात बिताने के लिए अपने रिश्तेदार के घर गए। हालांकि सैकड़ों लोगों की मौत का दुख सुमिता और एसके को परेशान कर रहा है मगर साथ ही वो ईश्वर का धन्यवाद कहते नहीं थक रहे जिन्होंने इस हादसे से उनको बचाया।
सुमिता दास कहती हैं कि ये बात किसी करिश्मे से कम नहीं है। उस कोच में उनका बेटा ही नहीं बल्कि पति भी जाने वाले थे। मगर उनके दिमाग में ना जाने क्या आया और उन्होंने दोनों को रोक लिया। ईश्वर की कृपा से दोनों की जान बच गई। कहा जाता है ना जाको राखे साइयां मार सके ना कोय।
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