विश्वविद्यालयों के फाइनल ईयर एग्जाम को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी, 30 सितंबर को॰॰॰

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सुप्रीम कोर्ट ने फाइनल ईयर की परीक्षा लेने के यूजीसी के 6 जुलाई के सर्कुलर को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें आपदा कानून के तहत फैसला ले सकती हैं लेकिन यूजीसी की अनुमति के बिना छात्र को प्रमोट नहीं कर सकते हैं।
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कोर्ट ने कहा कि जो राज्य सरकार 30 सितंबर तक परीक्षा नहीं चाहते हैं वे टालने के लिए यूजीसी को आवेदन दें। इस फैसले का मतलब ये है कि कोर्ट ने यूजीसी के अधिकार को मान्यता दी है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्य को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत परीक्षा टालने का अधिकार है लेकिन ऐसा फैसला लेने के बाद भी उन्हें यूजीसी को आवेदन देना होगा। परीक्षा के बिना छात्रों को पास घोषित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने पिछले 18 अगस्त को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
एक याचिकाकर्ता यश दुबे की ओर से पिछले 14 अगस्त को वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि यह मामला छात्रों के जीवन और स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि क्लास के बिना परीक्षा कैसे हो सकती है। सिंघवी ने कहा था कि गृह मंत्रालय ने अब तक शैक्षणिक संस्थानों को खोलने की अनुमति नहीं दी है, लेकिन परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है। उन्होंने कहा था कि ऐसा करते समय विवेक का उपयोग नहीं किया गया। सिंघवी ने कहा था कि गृह मंत्रालय ने अपने दिशानिर्देशों में से कभी भी किसी दिशानिर्देश में छात्रों को ये नहीं बताया कि पूरी परीक्षा आयोजित की जाएगी।

सिंघवी ने कहा था कि यहां शिक्षा विशेष नहीं है बल्कि महामारी विशेष है। महामारी हर किसी पर और हर चीज पर लागू होती है। अगर आपदा अधिनियम अथॉरिटी ये आदेश देती है कि खुली अदालतें शुरु नहीं की जा सकती हैं तो क्या मैं आकर ये कह सकता हूं कि मेरा यह अधिकार है और वह अधिकार है। सिंघवी ने कहा कि परीक्षा के आयोजन को लेकर यूजीसी के पास कोई सुसंगत रुख नहीं था। सिंघवी ने कहा था कि राज्यों की स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया। यूजीसी का फैसला संघवाद पर हमला है।

यूजीसी ने पिछले 13 अगस्त को दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार की ओर से फाईनल ईयर की परीक्षा निरस्त करने के फैसले का विरोध किया था। यूजीसी ने कहा कि दोनों सरकारें विरोधाभासी फैसले ले रही हैं। एक तरफ वो फाईनल ईयर की परीक्षा निरस्त करने का आदेश देती है और दूसरी तरफ नए एकेडमिक सत्र के शुरु होने की बात करती है।

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