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नई दिल्ली ।। भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कई बार सभी विपक्ष एक होकर उसे धूल चटाने के लिए प्रयास कर रहें हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। आज हम आपको ऐसे नेता के बारे में बताने जा रहे है जो गठबंधन की विफलता का प्रतीक बनता जा रहा है।






आपको बता दें कि सबसे बड़ा विवाद इस एकजुटता में नेतृत्व का ही दिखाई दे रहा है। अन्य क्षेत्रीय दल राहुल को जहां नेता मानने को तैयार नहीं तो वहीं कांग्रेस राहुल के अलावा किसी को नेता बनाने के मूड में नही दिख रही है।

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इसी कड़ी में अब जो बातें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कही हैं वह बातें भी दर्शाता है कि मन और मत मेल नहीं खा पा रहे हैं। ऐसे में इस एकजुटता की बातों का क्या होगा यह तो समय बताएगा।

राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उनके तेवरों में कुछ बदलाव जरूर आया है। वह अब आक्रामक हैं और सही तरीके से सही मुद्दों को उठा भी रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद वह अभी तक खुद को एक सर्वमान्य नेता साबित करने में नकामयाब रहे हैं।

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इसके पीछे वजह यह है कि वह कांग्रेस को कमोबेश अकेले आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं और राहुल अभी तक किसी भी क्षेत्रीय दल से उस गंभीरता से नहीं मिले या आगे बढ़ कर ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया जिससे यह माना जाए कि वह भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ़ सत-प्रतीशत एक मजबूत विपक्ष नहीं बनाना चाह रहे हैं।

अभी हाल ही में सीएम ममता बनर्जी ने भी यह कह कर इसके संकेत दे दिए कि राहुल को क्षेत्रीय दलों का बना मोर्चा अपना नेता स्वीकार नहीं कर सकता है। ऐसे में सवाल यह भी है कि आखिर ऐसे माहौल में कैसे विपक्ष एकजुट होगा और भाजपा को टक्कर देगा।

फोटोः फाइल

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