नई दिल्ली॥ महाराष्ट्र विधान परिषद में सीएम उद्धव ठाकरे की सदस्यता को लेकर पेंच फंसा हुआ है। शिवसेना सरकार के गठन को पांच महीनों का वक्त बीत गया है, लेकिन उद्धव ठाकरे अभी तक विधानसभा या विधान परिषद में नहीं पहुंच सके हैं। मह विकास आघाडी सरकार का उद्धव को विधान परिषद भेजने का प्रयास काफी तेजी से चल रहा है।
सीनियर मंत्रियों का प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलने और उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत करने का प्रस्ताव लेकर राजभवन पहुंचा, लेकिन राज्यपाल ने अभीतक इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। ऐसे में उद्धव ठाकरे की सीएम की कुर्सी पर खतरा मंडराने लगा है।
यदि राज्यपाल उद्धव ठाकरे को नामित नहीं करते हैं, तो उन्हें इस्तीफ देकर अपना मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ सकता है। ऐसे में हमने कुछ संविधान विशेषज्ञों से वार्तालात की। चलिए जानते हैं कि उनका इस विषय पर क्या कहना है।
- महाराष्ट्र के गवर्नर, कैबिनेट की सिफारिश मानने के लिए बाध्य हैं।
- गवर्नर विशेष परिस्थिति में कुछ और डिटेल्स मांग सकते हैं, लेकिन कैबिनेट से दोबारा सिफारिश किए जाने पर गवर्नर को मानना ही होगा।
- 6 महीने के अंदर किसी सदन का सदस्य नहीं बन पाने की वजह से जयललिता को सीएम पद छोड़ना पड़ा था। सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर अदालत ने स्पष्ट किया था कि छह महीने की मोहलत एक बार प्रयोग करने के लिए है।
- क्या नामित मेंबर के तौर पर सीएम की कुर्सी पर बैठ सकते हैं? तो इसके जवाब में सबका मानना है कि कानूनी तौर पर इसकी मनाही नही है, नैतिकता की बात अलग है।
- संविधान के धारा 171 (3) (E) के अंतर्गत राज्यपाल, विधान परिषद में कुछ सदस्यों को मनोनीत करते हैं। अनुच्छेद 171 (5) के मुताबिक उन लोगों को राज्यपाल मनोनीत करता है, जिन्होंने लिट्रेचर, साइंस, आर्ट, को-ऑपरेटिव मूवमेंट और सोशल सर्विस के क्षेत्र में कोई विशेष कार्य किया हो।