‘हमें तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के “चीनी प्रेम” पर सवालों के जवाब चाहिए’, …देश को क्या मिला?

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बतौर एक भारतीय नागरिक और एक जर्नलिस्ट, मुझे कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही “अतिशय चीनी प्रेम” के कारणों पर जवाब चाहिए। कांग्रेस राजीव गांधी फाउंडेशन में चीन से करीब 90 करोड़ का चंदा लेकर खा गई तो भाजपा का भी “चीनी प्रेम” 2014 से लेकर मार्च, 2020 तक कम झूला नहीं झूला है। “चीनी मजे” दोनों ने ही मारे हैं और यह कटु सत्य है कि दोनों ही दल “ब्लेम गेम” करके भाग नहीं सकते हैं।

भाजपा के ज्ञानवान पुरोधाओं को यह पता होना चाहिए कि जिनके घर शीशे के होते हैं उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। यह बात दीगर है कि आज मीडिया सत्ता के सहवास की भूमिका में है तो सवाल या सच सामने नहीं आएगा…. लेकिन करोड़ों लोगों के हाथों में मोबाइल भी है और उसमें भी एक छोटी सी स्क्रीन है, जिस पर सब कुछ प्याज की परतों के मानिंद खुलता है….. चीनी मजे कांग्रेस ने भी मारे हैं तो भाजपा भी चीनी प्रेम में राधा बन के खूब नाची है।

इसलिए बतौर एक हिन्दुस्तानी जवाब कांग्रेस से चाहिए कि जो पैसा उसने फाउंडेशन में लिया वह किस उद्देश्य से लिया और कहां खर्च हुआ? इस दान की क्या कीमत देश ने अदा की? भाजपा भी बताए कि देश के मौजूदा प्रधानमंत्री मात्र छह सालों में नौ बार चीन दौड़-दौड कर क्या करने गये थे? 2014 से लेकर अब तक जिस तरह से चीनी कंपनियों को देश के उद्योगों को तबाह करने की छूट दी गई, उसके पीछे का सच क्या है?

आखिर चीनी कंपनियों को अकेले गुजरात ने क्या परोस दिया कि वहां अरबों डालर का निवेश हुआ?

दुनियाभर में निवेश पर शोध करने वाली ब्रुकिंग्स इंडिया की मार्च में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार चीनी कंपनी टेबियन इलेक्ट्रिक एपरेटस देश में उर्जा से जुड़े भारी उपकरण बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। साल 2014 में जब चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग भारत दौरे पर आये थे, तब इस कंपनी ने गुजरात में इंडस्ट्रियल पार्क बनाने की घोषणा की थी। गुजरात में इस कंपनी ने ट्रांसफार्मर बनाने का प्लांट लगाया जिसमे 400 मिलियन डॉलर के निवेश का ऐलान किया और अबतक 150 मिलियन डॉलर का निवेश किया भी जा चुका है।

2014 से लेकर अब तक चीनी कंपनियों को आंख बंद करके भारत में व्यापार करने की अनुमति प्रसाद की तरह मिलती रही है। कुछ माह पूर्व ही चाइनीज़ मोटर कंपनी जीडब्ल्यूएम व महाराष्ट्र सरकार के बीच एक सहमति पत्र पर दस्तख़त हुए। इसमें चरणबद्ध तरीक़े से 100 करोड़ डॉलर का निवेश होगा और इसके ज़रिए 3,000 नौकरियां पैदा की जाएंगी। यह समझौता सोमवार 15 जून को हुआ था। जबकि भारतीय सीमा पर हमारे जवान सीना तानकर माइनस डिग्री सेल्सियस तापमान पर चीनी सेना के सामने डटे हुए थे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मैग्नेटिक महाराष्ट्र कैंपेन के ज़रिए राज्य में 16,000 करोड़ रुपये के निवेश का ऐलान किया था। इसमें एक निवेश जीडब्ल्यूएम का भी था।

गुजरात में चीन के करोड़ का निवेश का रास्ता लगभग साफ कर दिया गया था, लेकिन ताजा विवाद के बाद यह किस करवट बैठेगा, इसे देखना बाकी है। गुजरात में चीन के “एसएमई टेक्सटाइल” एक बड़ा औद्योगिक पार्क लगाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए आगामी जुलाई माह में चीनी प्रतिनिधिमंडल को गुजरात का दौरा करना था। आपको बता दूं कि हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी के चीन दौरे पर गुजरात सरकार के साथ चीन की कंपनियों ने 22 एमओयू साइन किए हैं।

यही नहीं, गुजरात में ही 20 स्क्वैयर किलोमीटर में एक स्मार्ट सिटी भी चीनी कंपनियों को ही बनाना था। गुजरात के सूत्रों के अनुसार “चाइना एसोसिएशन ऑफ एसएमई” ने इंडस्ट्रियल पार्क के लिए वड़ोदरा के पास जमीन खरीदनी भी शुरू कर दी है। राज्य सरकार ने गुजरात में टिम्बर पार्क लगाने के लिए भी चीनी कंपनी “कास्मे”को न्यौता दिया है।

विश्व में निवेश पर रिसर्च करने वाली “ब्रुकिंग्स इंडिया” की मार्च की रिपोर्ट बताती है कि चीनी कंपनी “टेबियन इलेक्ट्रिक एपरेटस” देश में उर्जा से जुड़े भारी उपकरण बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। वर्ष, 2014 में जब चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग भारत दौरे पर थे, तब इस कंपनी ने गुजरात में इंडस्ट्रियल पार्क बनाने की घोषणा की थी। गुजरात में इस कंपनी ने ट्रांसफार्मर बनाने का एक विशाल प्लांट लगाया है जिसमें 400 मिलियन डॉलर के निवेश का ऐलान किया जा चुका है और अबतक 150 मिलियन डॉलर का निवेश हो चुका है।

यहां यह बताता चलूं कि चीन की “ज़िंगज़िंग कंपनी” की स्थापना दरअसल चीनी सेना “पीएलए” ने की थी। कई साल चीनी सेना ही इस कंपनी को चलाती रही और बाद इस कंपनी को सेना से अलग किया गया। अब यह कंपनी भारत के स्टील प्लांटों में ज़बरदस्त तरीके से निवेश करके भारतीय स्टील उद्योग को तबाह कर रही है। एक अन्य चीनी कंपनी “शिंगशान होल्डिंग समूह” ने भी देश में जॉइंट वेंचर के तहत गुजरात के “ढोलेरा इंडस्ट्रीयल एरिया” में एक स्टील प्लांट लगा दिया है और इसमें 1 अरब डॉलर का निवेश किया जा चुका है। शिंगशाग होल्डिंग समूह का लक्ष्य है कि इस स्टील प्लांटों में 2 अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश भविष्य में किया जाएगा।

यही नहीं, ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी चीनी कंपनियों ने गुजरात में जबरदस्त निवेश किया है। वर्ष, 2019 में शंघाई की ऑटोमोबाइल कंपनी “एसएआईसी मोटर कॉरपोरेशन ने भारत में कदम रखा और घोषणा की कि वह “एमजी मोटर्स” का उत्पादन भारतीयों ग्राहकों की ज़रूरतों के हिसाब से करेगी।

कंपनी ने गुजरात के “हलोल” में जनरल मोटर्स के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में 2000 करोड़ रुपए के निवेश का ऐलान कर चुकी है। इसके अलावा यह चीनी कंपनी भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर में 350 मिलियन डॉलर के अतिरिक्त निवेश की तैयारी कर रही है। यह संक्षिप्त सच जो 2014 से अब तक विकसित हुआ है उसका विवरण है। मार्च,2020 में ही भारत सरकार ने करीब 1200 करोड़ का मेरठ-दिल्ली सुरंग बनाने का ठेका एक चीनी कंपनी को दे दिया, वह तो सवालों के बाद उस पर रोक लगी…….

वैसे तो हमारी राष्ट्रभक्ति की गहराई तो दिनांक 20/06/2020 को ही नजर आ गई थी। जब चीनी मोबाइल कंपनी ने‌ चाइनीज MI Note 9 फोन की ऑनलाइन सेल लगाई। बोली उक्त तिथि को 12 बजे दिन में लगी थी और आपको यह जानकर दुख होगा कि देशभक्ति का ज्वार 30 सेकंड में ही उतर गया। मात्र 30 सेकेंड में 1 लाख फोन बिक गये ।

कुछ दिन पूर्व रात में एक न्यूज चैनल देख रहा था जिसका ऐंकर कुर्सी पर उचक-उचक कर “मंकीनामा” करता है, वह चीनी कंपनी लेनेवो का विज्ञापन दिखा रहा था और चीन को गरिया रहा था। एक और न्यूज चैनल है दिन भर में “18” बार एम0 आई0 सिरीज के मोबाइल फोन का विज्ञापन दिखाता है और गाली चीन को बकता‌ है। चीन की कंपनियों को भारतीय मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक और खिलौना उद्योग को तबाह करने के लिए 2014 से भरपूर छूट दी जाती रही आज याद आया कि सांप को दूध पिलाने का खेल भारी पड़ेगा। यह छूट किस लिए दी जाती रही? इस तरह से दुश्मन देश के साथ गलबहियां करने और अपने ही देश के उद्योगों को चीनी कंपनियों के हाथों तबाह कराने का सच बतौर हिन्दुस्तानी सबको जानने का हक है।

साल, 1962 के युद्ध के बाद ही चीन अटल जी चीन गये थे। उनके बाद बहुत गौरवान्वित होकर भाजपा के एक फायर ब्रांड नेता स्व० प्रमोद महाजन ने भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना के रिश्तों को सारे जहां‌ से अच्छा बताया था? यह तो लोकसभा की कार्यवाही में भी दर्ज है। इसके बाद, 16 अक्टूबर 2009 को तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने चीनी राजदूत Z. Yan से मिले और एक घंटे तक बात की। यह क्या बात थी आज तक पता नहीं चली? इसके बाद अगस्त, 2010 में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष गडकरी से कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना का एक सात सदस्यीय चीनी प्रतिनिधिमंडल मिला था क्यों?

इसके बाद जनवरी 2011 में नितिन गडकरी साहेब को खासतौर पर चीन में पांच दिनों के लिए आमंत्रित किया जाता क्यों? बताया तो यह जाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना से एक समझौता हुआ था कि चीन बीजेपी शाषित राज्यो के विकास में खास मदद करेगा जिससे 2014 का चुनाव विकास के नाम पर जीता जा सके? बतौर भारतीय नागरिक इस सच को भी हमें जानने का हक है। सिंतबर 2019 में भी बीजेपी का एक प्रतिनिधिमंडल बाकायदा एक हफ्ते के लिए बीजिंग जाता है क्यों और वहां क्या समझौता करता है? क्या यह सवाल बनता है कि नोटबंदी के दौरान ही देश का प्रधानमंत्री चीनी ऐप “पेटियम” का प्रचार क्यों कर रहा था?

ऐसे बहुत से गंभीर सवाल हैं जो कांग्रेस को भी घेरते हैं और भाजपा को भी। दोनों दल हम हिन्दुस्तानियों को बताएं कि उन्होंने चीन से कब-कब, क्या-क्या वसूला और देश कहां लुटा?

(पवन सिंह)

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