img

बचपन इंसानी ज़िन्दगी का सबसे हसीन पल होता है चंचलता ललकता जिज्ञासुकता और शिक्षा हर एक बच्चे का मौलिक अधिकार लेकिन सभी का बचपन ऐसा हो ये ज़रूरी नही, क्योंकि हाल की स्थिति और आंकड़े इसी ओर इशारा कर रहे है, जिन बच्चों को बच्चे  देश का भविष्य बताया जाता है वो आज भी सड़क पर भीख मांगते नज़र आ रहा है.

child begger

बता दें कि भीख मांगने का दृश्य लगभग के देश के हर राज्य के, हर जिले के, हर कोने में देखा जा सकता है. आंकड़े बताते है केवल देश की राजधानी में ही हजारों बच्चें सड़क अपर भीख मांगते हुए नज़र आ जाएंगे. और पूर  भारत में इनकी संख्या 3 लाख से उपर है। वहीँ ये आंकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहे है.

वहीँ इनसे बात करने पर पता चलता है कि इनमे से अधिकतर बच्चों को दूसरे शहरो से लाया जाता है और भीख मांगने पर मजबूर  किया जाता है  और कुछ इसलिय मांगने को मजबूर है कि उनकी माली या आर्थिक हालत बहुत कमज़ोर है. जिसके वजह से वो सड़कों पर भीख मांगते हुए नज़र आते है.

देश भर में हर दिन मे बच्चे की गायब होने की रिपोर्ट

आपको बता दें कि देश भर में हर दिन मे बच्चे की गायब होने की रिपोर्ट की जाती है जिसमे 50 फीसदी  की रिपोर्ट ही राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्योरो को दी जाती है ,राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल 40,000 बच्चों  का अपहरण होता है, जिनमे 11 हज़ार का कोई पता नही चलता.साल 2011 में अपहरण के 15284 मामले की रिपोर्ट दर्ज हुई जो की साल 2010 की अपेक्षा से 43 फीसदी बढ़ा मिला.

आपको बता दें कि ये मामला भीख मांगने तक सिमित नही है, इन बच्चो को देह व्यापार, बंधुवा मजदूरी, बाल मजदूरी, अंग प्रत्यारोपण तक करने को मजबूर किया जाता है, साल 2011 में बाल तस्करी के ऐसे 3517 मामले सामने आए, जिसमे बच्चो को देह व्यपार ,बाल विवाह ,अंग प्रत्यारोपण के दलदल में धकेला गया.

ज्ञात हो कि भारत  की 10% मानव तस्करी ही अन्तर्राष्टीय है बाकी 90% तस्करी देश के अंदर एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में की जाती है। लगभग 44 हज़ार बच्चें हर साल  इन तस्कर गिरोह  के हाथ आ जाते है। इसमें वो बच्चे भी शामिल  है जिनके परिवार माली हालत की वजह से अपने बच्चे बेच देते है और वो भी जो बच्चे  घर से भागते है।  आंकड़े से हम अंदाज़ा लगा सकते है की ये हकीकत कितनी दर्दनीय और भयवाह है।

सुप्रीम कोर्ट का सख्त सन्देश

बता दें कि ये दर्द सिर्फ हमारे देश का नहीं बल्कि समूचे विश्व का है। लेकिन भारत में एक बीमारी की तरह फ़ैल रहा है रिपोर्ट ये भी कहती है सबसे अधिक बाल मज़दूर भारत में है जिनकी उम्र 14 साल से भी कम है। जबकि इस पर देश की सुप्रीम कोर्ट ने सख्त सन्देश के साथ इस पर रोक लगाई है।

लेकिन फिर भी देश में 12.5 करोड़ बाल मज़दूर काम कर रहे या कराये जा रहे है जिसमे 21 फीसदी बच्चे सिगरेट और 17 फीसदी बीड़ी फैक्ट्री में काम करते है और 15 फीसदी को घरेलु नौकर बना के रखा जाता है।  बाकि बच्चे कूड़ा बीनने,और पटाखा और कालीन फैक्ट्री आदि जैसी जगहों पर काम करते है।

तीसरा बड़ा संगठित अपराध

कानून होने के बावजूद अगर आंकड़े इतने भयानक है तो स्थिति अच्छी नहीं है और इसके लिए सरकार से लेकर समाज तक को सोचना होगा। क्योंकि रिपोर्ट की माने तो मानव तस्करी तीसरा ऐसा संगठित अपराध है जो कुछ ही समय में हथियार और नशीली दवाइओ जैसे संगठित अपराध को पीछे छोड़’ देगा जिस तरह हम आज पर्यावरण, अर्थवयवस्था और देश सुरक्षा  को लेकर चिंतित है और अनेको कदम उठा रहे है इसी तरह हमे इस पर भी  गंभीर होना पड़ेगा। ।

सरकार और अन्य कई संस्था ने इस गंभीर मुद्दे पर अनेको प्रयास कर रही है  लेकिन ये प्रयास नाकाफी है और समाज को भी अपने ज़िम्मेदारी समझनी होगी।अगर इस धन्दे में शामिल लोग को छोड़ दें, तो हम-आप जैसे कई पढ़े लिखे लोग अपने घरो और फक्ट्रियों में बच्चो से जबरन काम करा रहे है.

हमारा देश तो ऐसा है जहाँ बच्चों को भगवान रूप माना जाता है और सम्मान किया जाता है. अपने भगवान के साथ ऐसा दुर्यवव्हार कोई कैसे कर सकता है। सोचना होगा ज़िम्मेदार किसे ठहराया जाए सरकार या समाज? क्योंकि इस स्थिति के दोनों बराबर भागीदार नज़र आ रहे है

अहराज़ अहमद