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लखनऊ।। योगी सरकार भले ही निवेशकों को लुभाने के लिए प्रदेश में एक बड़ा इन्वेस्टर्स समिट करने जा रही है और इसे सफल बनाने के लिये बड़े शहरों में रोड-शो भी हुये लेकिन प्रदेश में पहले से जमे उदयमियों की खैर-ख्वाह लेने की फुर्सत सरकारी मशीनरी के पास नहीं है। उद्यमी को सुविधायें देने वाले विभाग ही उनके साथ ‘चोर-सिपाही’ का खेल रहे हैं।

 

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गाजियाबाद के एक उद्यमी 40 साल से अपने इंडस्ट्रियल-प्लाट का मालिकाना हक पाने के लिये उप्र राज्य औदयोगिक विकास प्राधिकरण (UPSIDC) के चक्कर काट रहे हैं। उन्हें हक तो नहीं मिला, उल्टे निगम ने उन्हें आवंटित जमीन का आवंटन दूसरे के पक्ष में कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि UPSIDC वही जमीन अब एक दूसरे व्यवसायी के पक्ष में हस्तांतरित करने की तैयारी है। निगम में यह खेल वर्षों से जारी है।

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UPSIDC के अफसरों की धौंस और कर्मचारियों की कारगुजारी के आगे उद्यमियों की आवाउद्यमी ज गुम हो रही है। बता दें कि उद्यमी को वर्षों पहले लोनी रोड, साइट—2, गाजियाबाद में 24930 वर्ग मीटर प्लाट का आवंटन हुआ था। उन्होंने भूखण्ड के प्रीमियम का भुगतान भी किया। लेकिन उस पर वह उदयोग लगाते इससे पहले करोड़ों की इस जमीन को निगम के अफसरों की नजर लग गई। तभी से निगम और उद्यमी के बीच विवाद शुरू हो गया। निगम के अफसर उस जमीन को दूसरी इकाईयों को आवंटित करने के फेर में पड़ गये। नतीजतन उनका उदयोग लगाने का सपना चकनाचूर हो गया।

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अपनी जमीन बचाने के लिये उन्हें कोर्ट की शरण में जाना पड़ा। कोर्ट ने भी यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दे दिया। हालाँकि बाद में निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक जसवंत सिंह ने महाप्रबंधक (विधि) की राय से जमीन को उद्यमी के पक्ष में मान्यता देने की संस्तुति भी की। लेकिन इसका कोई असर नहीं दिखा। कागजी घोड़े दौड़ाने में महारत हासिल कर चुके UPSIDC के अफसरों ने एक नया रास्ता निकाल लिया। उनको आवंटित जमीन निरस्त किये बिना दूसरी इकाई को बेचने की तैयारी कर ली।

निरस्त किये बिना जमीन दूसरी इकाई को​ दिया

हालाँकि भूमि पर उद्यमी का ही कब्जा था लेकिन चौंकाने वाले घटनाक्रम में निगम ने इस जमीन को बेचने के लिये विज्ञापन प्रकाशित करा दिया, इसमें दो आवेदन आये। फिर साक्षात्कार के बाद नये आवेदनकर्ता प्लास्टोकेम के पक्ष में भूखण्ड की लीज-डीड कर दी गई। जबकि इस जमीन पर निगम का भौतिक कब्जा ही नहीं था और निबंधक (प्रथम) गाजियाबाद के मुताबिक अब तक लीज-डीड मूल आवंटी के नाम पर ही है । पर इन दुस्साहसी अफसरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। निगम के अधिकारियों के मुताबिक उद्यमी के पक्ष में पूर्व में की गई लीज-डीड को निरस्त कराने के लिये निर्धारित प्रक्रिया का पालन ही नहीं किया गया।

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फिलहाल नये आवंटी ने जब भूमि आवंटन के दो महीने बाद उदयोग लगाने के स्थान पर भूखण्ड के उप-विभाजन करने का प्रस्ताव दिया, उसे उसकी स्वीकृति भी मिल गई। लेकिन बाद में खुद को फंसता देख UPSIDC के अफसरों ने खुद ही यह स्वीकृति वापस ले ली और भूखण्ड का हस्तांतरण भी निरस्त कर दिया। अब दूसरे आवंटी ने यही जमीन एक अन्य उदयोग इकाई के पक्ष में हस्तांतरित करने का प्रस्ताव दिया है। विभागीय जानकारों के मुताबिक निगम के अफसर यह भूमि इस इकाई को देने की तैयारी में है, जबकि अभी भी UPSIDC के पास इस भूखण्ड का भौतिक कब्जा नहीं है। वहीँ इस बारे में निगम का कोई भी अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

इन्वेस्टर्स समिट में उठायेंगे आवाज

उद्यमी का कहना है कि वह वर्षों से UPSIDC में हो रही धांधलियों से मानसिक व आर्थिक रूप से परेशान हो चूका है। इसके चलते वह अपना उदयोग स्थापित नहीं कर पाये। मुख्यमंत्री कार्यालय से इस प्रकरण की जांच के निर्देश के बाद बाद विभागीय जांच में उनके सभी तथ्यों की प्रमाणिकता सही पाई गई। फिर भी उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है।

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अपने मामले को लेकर जब उद्यमी UPSIDC के प्रबंध निदेशक रणवीर प्रसाद से मिलते हैं तो उद्यमियों के प्रति उदासीन रवैये के चलते उद्यमियों को निराश ही हाथ लगती है। MD रणवीर प्रसाद के उद्यमियों के प्रति निराशाजनक रवैये के चलते कुछ उद्यमियों का कहना है कि वह आगामी इन्वेस्टर्स समिट में अपनी आवाज उठाएंगे।पुराने आवंटियों के लिए MD रणवीर प्रसाद के पास भले ही टाइम न हो लेकिन आजकल नये निवेश को आकर्षित करने के लिए इन्वेस्टर समिट के चलते अचानक बिजी होने को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं कि जब UPSIDC के पास लैंड बैंक ही नहीं तो निवेश आएगा कैसे।

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